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________________ पापभीरू पुजारी घबराकर कहता है कि सरकार इस गंधोदक में विष मिला है। तब राजा हँसकर कहता है-अरे पगले! भगवान क इस पवित्र गंधोदक में विष कहाँ से आयेगा? ऐसा कहकर राजा उस गंधोदक को अंजुली में लेकर पी लेता है और अत्यन्त श्रद्धा से शरीर पर लगाकर घर चला जाता है। देखिय यह कथानक नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष प्रमाण है। राजा का हृदय सरल था, श्रद्धा-भक्ति से भरा हुआ था, अतः विष मिला हुआ गंधोदक पीने से भी राजा को कुछ नहीं हुआ। लोक में कोई ऐसा पदार्थ नहीं, जिसको पाने के लिये छल-कपट करना चाहिये । सरल भाव में रहोगे तो सदा आनन्द रहेगा और भविष्य भी अच्छा रहेगा। लोग धन कमाने क लिये अनेक प्रकार से मायाचारी करते हैं। पर ध्यान रखना, पाप द्वारा कमाया गया धन निरर्थक होता है। यदि उसे अच्छ कार्य में लगाना चाहो, तो भी नहीं लगता। एक वेश्या ने बहुत धन कमाया। एक दिन उसके मन में विचार आया कि मैंन बहुत पाप किये और पाप से धन भी खूब कमाया, अब उस धन का दान करके कुछ पुण्य कमाना चाहिये | तब वह दान करन के लिये गंगा के तट पर गई । वहाँ उसका विचार एक ठग ने जान लिया, सो वह बदन में राख लगाकर सबसे अलग एकान्त में बैठ गया। उस वेश्या ने चारों तरफ घूमकर देखा कि मैं किस साधु के पास दान करूँ, जो मुझे फलदायक होगा। असली से अधिक आकर्षण नकली में होता है | इसी प्रकार साधुओं से ज्यादा आकर्षण उस ठग बने साधु में था। सो वेश्या न उसी के पास दान करना तय किया और बोली-महाराज! मैं दान करना चाहती हूँ | तब साधु बोले कि तू कौन है? मैं एक वेश्या हूँ, उसने बताया । तब वे बोले तूं वेश्या (237)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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