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________________ हमारे मन का प्रभाव निश्चित रूप से सामने वाले पर पढ़ता है । अतः हम अपने मन को सदा पवित्र व प्रसन्न रखें। मन में होय सो वचन उचरिये, वचन होय सो तन सों करिये। यह उन्हीं के लिये कहा गया है, जिनका मन इतना पवित्र हो गया है कि जो बात उनके मन में आई है, यदि वह वाणी में भी आ जाय तो फूलों की वर्षा हो और यदि उसे कार्यान्वित कर दिया जाय, तो जगत निहाल हो जावे । जिनका मन अपवित्र है, यह उपदेश उन्हें मन की विकृतियों को बाहर लाने के लिये नहीं है, बल्कि इसका आशय मात्र यह है कि मन को इतना पवित्र बनाओ कि उसमें कोई खोटा भाव आवे ही नहीं । वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति मन में आये खोटे भावों को रोकने का प्रयत्न करता ही है । पर कभी-कभी जब मन भर जाता है, वह भाव मन में समाता नहीं, तो वाणी में फूट पड़ता है। एक बात यह भी है, कि जब कोई भाव निरन्तर मन में बना रहता है, तो फिर वह वाणी मैं फूटता ही है, उसे रोकना संभव नहीं हो पाता। जो जहाँ से आते हैं, वहाँ की बातें उनके मन में छाई रहती हैं । अतः वे सहज ही वहाँ की चर्चा करते हैं । यदि कोई आदमी अभी-अभी अमेरिका से आया हो, तो वह बात-बात में अमेरिका की चर्चा करेगा। भोजन करने बैठेगा तो बिना पूछे ही बतायेगा कि अमेरिका में इस तरह खाना खाते हैं, चलेगा तो कहेगा कि अमेरिका में इस प्रकार चलते हैं । कुछ बाजार से खरीदेगा तो कहेगा कि अमेरिका में तो यह चीज इस भाव में मिलती है आदि । यही कारण है महाराज दिन-रात आत्मा का ही चिन्तन-मननअनुभवन करते रहते हैं । अतः उनकी वाणी सदा आत्म कल्याण करने वाली होती है और विषय - कषाय में विचरण करने वाले मोही जन 226
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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