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________________ हा जायेगी । T एक बुढ़िया सिर पर पोटली रखे धीरे-धीर चली जा रही थी । बोझ के कारण वह थक चुकी थी, इतने में एक घुड़सवार बाजू से निकला । बुढ़िया ने कहा- बेटा ! मेरी यह पोटली घोड़े पर रख लो, इसे अगले गाँव छोड़ देना, मैं धीरे-धीरे आ जाऊँगी । उस घुड़सवार ने बुढ़िया की बात सुनी - अनसुनी की और यह कहता हुआ आगे बढ़ गया कि जब बोझा ढोते नहीं बनता तो इतना लाद कर क्यों चलती हो । मैं क्या किसी का नौकर हूँ, जो बोझा ढोता रहूँ? और घुड़सवार आगे बढ़ गया। आगे पहुँचने पर अचानक उसके मन में भाव आया कि बुढ़िया तो अकेली है, पुराने लोग हैं, पोटली में माल जरूर रखा होगा | यहाँ कौन देख रहा है कि बुढ़िया ने मुझे पोटली दी है ? और जब तक यह गाँव पहुँचेगी, तब तक मैं कहीं का कहीं पहुँच जाऊँगा । वह वापस आया और बड़े प्रेम से बुढ़िया से बोला - अम्मा जी ! उस समय जब आपने कहा था, मैं समझ नहीं पाया था, इसलिये मना कर दिया था, लाओ अब पोटली, मैं अगले गाँव छोड़ दूँगा | अब तक बुढ़िया संभल चुकी थी । वह बोली- रहने दे, बेटा! अब मैं ही ले जाऊँगी । घुड़सवार बोला- अरे अम्मा जी ! यहाँ पर अभी कोई नहीं आया, किसने आकर क्या कह दिया जो तुम मना करने लगीं? बुढ़िया बोली- जिसने आकर तेरे से यह कह दिया कि बुढ़िया अकेली है, उसकी पोटली ले लो, उसी ने मुझ से भी कह दिया कि सावधान, इस अपरिचित व्यक्ति को अपनी पोटली मत देना । - यह है हमारे परिणामों का प्रभाव । बुढ़िया का मन सरल था, इसलिये वह प्रसन्न रही, किन्तु घुड़सवार के मन में कुटिलता आई, जिससे वह बुढ़िया को ठगना चाह रहा था, पर ठगने वाला स्वयं ही ठगा-सा रह गया । 225
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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