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________________ कूबड़ ऐसी बनाई कि सबकी कूबड़ टूट जाये | ब्रह्माजी ने कहा कि बिल्कुल गलती हो गई। उन्होंने तीसरे नम्बर पर बंदर बनाया | ब्रह्माजी ने सब ठीक किया लेकिन उस इतना चंचल बना दिया कि उसकी चंचलता का काई ठिकाना नहीं। चौथे नंबर पर उन्होंने मनुष्य बनाया । सब बिल्कुल सोच-समझकर, विचार कर बनाया और ऑडिटर से बाले खबरदार, अब इसमें दाष निकाला तो? मैंने बहुत सावधानी से बनाया है। ऑडिटर सोचता है कि यदि मैंने दोष नहीं निकाला, ता मेरा ऑडिटरपना किस काम का? बोल-ब्रह्माजी! इसमें तो बड़ा दोष है। दाष यह है कि इसमें बाहर कोई भी कमी नहीं दिखती है, अतः इसके हृदय में एक खिड़की बना देते हैं, जिससे यह पता चल जाये कि मानव बाहर स क्या दिखता है और अंदर क्या करता है? यह कोई नहीं जान पाता, यह सबसे बड़ी कमी मानव की है | लकिन ऑडिटर का सुझाव नहीं माना गया। परिणाम यह हुआ कि मनुष्य के मन में कुछ, वचनों में कुछ और क्रिया कुछ की कुछ होती है। बस एक कमी है और यही सबस बड़ी कमी है। बाहर से तो वह बड़ा सरल दिखता है और अंदर से गरल का घड़ा रखे रहता है। एक खिड़की बना दो इसके हृदय में, जिसमें सब देख सकें कि अन्दर क्या है, बाहर क्या है? लेकिन यह संभव नहीं है। इसलिये मनुष्य बाहर कुछ रहता है और अन्दर से कुछ और ही रहता है। मीरा प्रभु क भजन में मग्न रहती थी । 'मीरा हा गई मगन, ऐसी लागी लगन | वह तो गली-गली, प्रभु गुन गाने लगी।' मीरा की शादी राजघराने में हुई थी। पर राणा को यह सहन नहीं हुआ कि मेरी रानी कुल की मर्यादा का छोड़कर गली-गली भिक्षा से भोजन करे | राणा ने जहर मिलाकर दूध का कटोरा प्रसाद के रूप में मीरा के पास भेजा और कहा कि तेरे राजमहलों में कथा हुई है, यह (198)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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