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________________ पक्षपात नहीं होता | बात सिर्फ इतनी है कि आप-जैसे सीधे- साधे ईमानदार लाग तो रोज ही इस स्वर्ग में जन्म लेते रहत हैं, इसलिये हम लोगों को कोई खास फर्क नहीं पड़ता। पर ये सठ लोग साल, दा साल में एकाध कोई पैदा होता है, अतः हम लोग भी थोड़ी खुशी मना लेते हैं। कितना तीखा व्यंग है। पाप क रास्ते पर चलने वाला कभी स्वर्ग नहीं पहुँच सकता। यदि हमें इन दुर्गतियों के दुःखों से बचना है, तो इस मायाचारी, अन्याय व अनीति का छोड़ना ही होगा। मन, वचन, काय में एकता का न हाना ही मायाचारी कहलाती है | आज व्यक्ति कितने विकृत हो गये हैं। उनका चेहरा कुछ और रहता है उनक विचार कछ और रहते हैं उनकी चाल कछ और होती है और वे कुछ और हाते हैं। मायाचारी व्यक्ति का व्यवहार सहज एवं सरल नहीं होता | वह सोचता कुछ है, बोलता कुछ है और करता कुछ है | उसके मन, वचन, काय में एकरूपता नहीं रहती। एक व्यंग्य है कि ब्रह्माजी को एक विकल्प हो गया कि मुझे बहुत कार्य होते हैं, एक ऑडिटर रख लूँ | ऑडिटर रख लिया, और कहा-देख, तेरा काम यह है कि मैं दुनिया की चीजें बनाता हूँ, कोई चीज गड़बड़ हो जाये तो मुझे बताना कि महाराज यह गड़बड़ हो गई। ब्रह्माजी ने सबसे पहले एक हाथी बनाया और हाथी बनाने के बाद ऑडिटर को सौंप दिया कि देखो, कोई गड़बड़ ता नहीं है? ऑडिटर साहब कहते हैं - भगवन्! बाकी सब ठीक है, लकिन इसकी नाक इतनी लम्बी कर दी कि वह जमीन में लटकती रहती है। ब्रह्माजी कहते हैं कि गलती हा गई, वह तो बन गया, मिटेगा नहीं। पर अब अब अगला जानवर ऐसा बनाऊँगा कि उसमें कोई गलती नहीं होगी। तो उन्होंने एक ऊँट बनाया, जिसकी कूबड़ ऊपर उठी थी। ऑडिटरजी बोले-महाराज! सब ठीक बनाया, लेकिन इसकी (197)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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