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________________ आज आदमी का अहंकार बड़ा सूक्ष्म है । उसको पकड़ना और देखना आसान नहीं है। सलामत खाँ से किसी ने पूछा कि सदर बाजार में जो अहमद खाँ रहता है, क्या आप उसके भाई हैं? सलामत खाँ ने कहा- नहीं, मैं उसका भाई नहीं हूँ, वह मेरा भाई है । देखो, आदमी का अहंकार कितना सूक्ष्म है । मैं उसका भाई कैसे हो सकता हूँ? यह तो मेरे लिये अपमान की बात है । वह मेरा भाई है । इससे आदमी के अहंकार को बल मिलता है । एक भिखारी ने दरवाजे पर दस्तक दी और कहा- भिक्षामि देही । घर से बहू निकलकर आई और उसने कहा- चले जाओ, यहाँ कुछ नहीं मिलने वाला। भिखारी आगे बढ़ गया। रास्ते में उसे बहू की सास मिल गई । भिखारी ने कहा - अम्मा! मैं आपके घर गया था, बहू ने भीख देने से मना कर दिया । सासू जी बोलीं- अच्छा, बहू ने भीख देने से मना कर दिया? तू चल मेरे साथ | और वह उस भिखारी को अपने साथ पुनः घर ले आई। घर आकर उसने पहले तो बहू को खूब डॉटा कि तूने भिखारी को भीख देने से इंकार क्यों किया? फिर भिखारी से बोली कि तू जा, मुझे भीख नहीं देनी । भिखारी ने पूँछा - यदि भीख नहीं देनी थी तो मुझे लौटाकर फिर यहाँ तक क्यों लाई ? पता है सासू ने क्या जवाब दिया? उसने कहा- 'बहू कौन होती है मना करनेवाली ? मना भी करूँगी तो मैं ही करूँगी ।' तो अहंकार बड़ा सूक्ष्म होता है । उसे देखना और पकड़ना दोनों ही कठिन हैं । मानव श्रेष्ठ - दान के माध्यम से लोभ पर विजय प्राप्त कर सकता है | अहिंसा के द्वारा हिंसात्मक प्रवृत्ति पर विजय प्राप्त की जा सकती है । अपरिग्रह के माध्यम से परिग्रह का त्याग संभव है | क्षमा से क्रोध पर विजय प्राप्त की जा सकती है । सत्य असत्य को पराभूत कर सकता है । पुण्यकर्मों के संचय से पाप का क्षय हो सकता है । 165
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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