SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लंका को डुबा बैठा। रावण उच्च कुल का ब्राह्मण, विद्याधर था, किन्तु वह जब दुराचारी हो गया तो सबने उसे नीच कहा । उसकी भक्ति व शक्ति की तीनलोक में गूंज होती थी, परन्तु जब उसका आचरण पापमय व दुराचारयुक्त हा गया तभी तो उसे सारे संसार ने पापी/दुरात्मा कहा। महान् ज्ञानी रावण की दुर्गति उसके अन्यायपूर्ण आचरण से हुई। ___साक्षात् तीर्थ कर के कुल में उत्पन्न हुये मारीच को उसके दुराचरण के कारण काई भी दुर्गति में जाने से नहीं रोक पाया । कर्मों की यही ता विचित्रता है कि जैसा आचरण होगा, वैसे परिणाम भगतने पड़ेंगे। रावण इसीलिये ता नरक गया कि उसके परिणाम बिगड़ गये और रावण का भाई विभीषण मोक्ष गया, क्योंकि उसके परिणाम सुधर गये । विनय से जीवन पवित्र व उन्नतिशील बनता है, जबकि अहंकार से पतन होता है, यह नियम है। जो ज्ञानी पंडित हों, उन्हें भी ज्ञान का मद नहीं करना चाहिये । यह विचारना चाहिये कि मरे से बड़े-बड़ और भी बहुत से ज्ञानी लोग हैं | बड़े-बड़े ऋषि, मुनि, केवली भगवान ये सभी चिदात्मज्ञानी हैं | मैं एक अल्पज्ञानी हूँ | ज्ञान का मद करना मेरी मूर्खता है | व्यर्थ ज्ञान का मद करना मुझ शोभा नहीं देता। धन का मद करना भी व्यर्थ है। पूर्वोपार्जित पुण्य से मिली सम्पदा क्षणिक है, और इन्द्रिय वासनाओं को बढ़ाने वाली है | जब बड़े-बड़े सम्पत्तिशाली चक्रवर्ती, स्वर्ग में कुबेर आदि की सम्पत्ति स्थिर नहीं रही, एक दिन पुण्य समाप्त होते ही उनको छाड़कर जाना पड़ा, फिर मैं क्षणिक सम्पत्ति को पाकर गर्व करूँ तो मेरे समान अधम या मूर्ख कौन होगा? ये मद स्थिर रहनेवाले नहीं हैं तथा (123)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy