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________________ सदा बड़ा ही माना जाता है । अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन रास्ते से गुजरते समय सामान्य राहगीर के द्वारा प्रणाम करने पर अपना हेट उतारकर और झुककर उसके प्रणाम का जबाव देते थे । जो लोग उनके साथ चलते थे, उन्हें यह देखकर बड़ा आश्चर्य होता था। एक बार किसी ने उनसे कहा कि आप इतने बड़े पद पर हैं, आपको इस तरह सामान्य व्यक्ति के सामने झुकना शोभा नहीं देता । अब्राहम लिंकन ने कहा'भाई ! व्यक्ति तो गुणों से महान होता है और विनय भी तो एक गुण है। क्या आप चाहते हैं मुझमें विनय गुण न रहे? मैं अगर आपकी दृष्टि में बड़ा और महान हूँ तब मुझ में विनय गुण ज्यादा होना चाहिये ।' इससे यह स्पष्ट होता है कि जो जितना विनयवान् है, वह उतना ही गुणवान् और महान् है । ‘मृदोर्भावः मार्दवम्’ अर्थात् जहाँ मृदुता का भाव है, वहाँ मार्दवधर्म होता है । अनादिकाल से यह जीव अहंकार में जिया, उसने अहंकार को कभी नहीं छोड़ा। आचार्य कहते हैं - कभी भी उच्च कुल का, धन का ज्ञान आदि का अहंकार मत करना; बल्कि अपने आचरण को पवित्र बनाना । भविष्य के कर्मों का लेखा जोखा कुल व जाति पर नहीं, बल्कि अपने आचरण पर आधारित है । यदि हमारा आचरण पवित्र है, तो कल्याण होगा और यदि आचरण भ्रष्ट है, तो पतन होगा । उसे कोई बचा नहीं पायेगा। सबसे बड़ा निकृष्ट वह कहलाता है, जिसका कुल तो उच्च हो और आचरण नीच हो। ऐसा व्यक्ति स्वयं तो दुर्गतियों में जाता ही है, और अपने कुल को भी कलंकित करता है। रावण का कुल उच्च था, परन्तु आचरण नीच था, इसलिये सारी 122
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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