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________________ दुर्गति में ले जानेवाले हैं। ऐसा विचार कर ज्ञानी लोग कभी भी गर्व नहीं करते। ___अहंकारी मनुष्य मानकषाय के कारण दूसरों के प्रति झुकता नहीं है और आपस में नमस्कार इत्यादि भी अहंकार की वजह से नहीं करता है | सूखे बाँस के समान सीधा ही रहता है। जैसे सूखा बाँस नम्र नहीं होता है, अगर उसको ज्यादा जार से झुकाया जाये तो बीच में स टूट जाता है, उसी प्रकार अहंकारी मनुष्य अन्दर नम्रता न होने के कारण अहंकार स किसी क साथ नम्रता का व्यवहार नहीं करता। मान कषाय सदाचरण को, विनय को नष्ट करने के लिए तूफान के समान है | आज व्यक्ति जरा सा वैभव, बल आदि प्राप्त कर लेता है तो अहंकार करने लगता है, मूंछों पर ताव देने लगता है। पर ध्यान रखना यह मूंछ बहुत खतरनाक है | मेरी मूंछ कहीं नीची न हो जाये इसके लिये व्यक्ति अत्यन्त मेहनत से कमाय धन को भी पानी की तरह बहा देता है। __व्यक्ति परपदार्थों को अपना मानता हुआ झूठा अहंकार करता है, जिसका कोई मूल्य नहीं, कोई आधार नहीं | माँगकर पहन हुये गहनों पर गर्व कैसा? यह सब वैभव पुण्यरूपी साहूकार से उधार माँगकर लाये हा, जिस दिन वह माँग बैठेगा तब वापिस देना पड़ेगा। फिर उस पर इतना गर्व क्या? यह लक्ष्मी तो न आज तक सदा किसी के पास रही है और न आगे रहेगी। एक सेठ जी थे | दुर्भाग्यवश वे दरिद्र हो गये | जब घर में कुछ नहीं रहा तो किसी राजा के न्यायालय में बैठकर अर्जीनवीसी करने लगे | जो कुछ मिल जाता, उससे अपनी गुजर करने लगे। कुछ दिन बाद जब सेठ जी घर पर जीने से ऊपर चढ़ रहे थे तब लक्ष्मी ने (124
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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