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________________ पर सवार व्यक्ति अपने जीवन में सुख-शान्ति नहीं पा सकता । वे ही महान होते हैं, जो झुकने की कला जानते हैं । I यदि जीवन में उन्नति करना चाहते हो तो झुकने की कला सीखो। सबने वेंत को देखा होगा । जब आँधी, तूफान आता है तब बेंत पूरा - का- पूरा जमीन की ओर झुक जाता है। ऐसा लगने लगता है मानों नष्ट हो गया हो । लेकिन जैसे ही आँधी-तूफान रुकता है, वह पुनः यथावत् खड़ा हो जाता है । आँधी-तूफान उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता, जबकि उसके आसपास उगे बड़े-बड़े वृक्ष धराशायी हो जाते हैं । जो झुक नहीं पाता, वह टूट जाता है या उखड़ जाता है और जो झुक जाता है, वह बच जाता है। जो झुकना जानता है, उसका कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता । एक दार्शनिक हुये हैं कन्फ्यूशियस । एक दिन एक राह चलते व्यक्ति ने उनसे पूछा कि झुकने से क्या होता है? कन्फ्यूशियस ने अपना मुख खोलकर कहा कि इसमें झाँको। वह व्यक्ति बड़े असमंजस पड़ गया। कन्फ्यूशियस ने कहा- भाई ! तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ, झाँककर तो देखो। उस व्यक्ति ने जैसे ही झाँककर देखा, दार्शनिक ने पूँछा - क्या दिख रहा है? व्यक्ति ने कहा- आपके मुँह में दाँत तो एक भी नहीं दिख रहा है, अकेली जीभ दिख रही है । दार्शनिक ने कहा अच्छा बताइये पहले कौन आता है, दाँत या जीभ ? वह बोला- दाँत बाद में आते हैं और जीभ तो जन्म से ही रहती है । कन्फ्यूशियस ने हँसकर कहा कि लीजिये, आपका उत्तर मिल गया । दाँत बाद में आये, लेकिन पहले ही टूट गये, क्योंकि उन्हें झुकना नहीं आता, उनमें कठोरता है । जीभ में लचीलापन है, मृदुता है, वह झुकना जानती है, इसलिये बची हुई है । यह झुकने या विनय का महत्त्व है । विनय करने से कोई छोटा नहीं होता । विनय करनेवाला 121)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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