SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२८) सौम्ययुक्तक्षिते विद्ध स्वीयगेहादिसंस्थिते । यदा पुण्यांशके चन्द्रो राज्यप्राप्तिधनैः सह ॥१३१॥ सौम्ययुक्तक्षिते विद्धं स्वीयतुङ्गादिसंस्थिते । यदा भार्यांशके चन्द्रो मुद्राप्राप्तिस्तदा क्षणे ॥१३२॥ सौम्ययुक्तेक्षिते विद्धं स्वीयतुङ्गादिसंस्थिते । यदा लाभांशके चन्द्रः कोटिप्राप्तिः श्रियस्तदा ॥१३॥ सौम्ययुक्तक्षिते विद्ध स्वीयतुङ्गादिसंस्थिते । व्ययस्थाने यदा चन्द्रो व्ययो भवति सर्वदा ॥१३४॥ एवमंशकफलम् ।। अतः परं जन्मदशा फलञ्च जन्मलग्नतः । "मृतिभूयाद्व्ययाको भवति च चरमो यावता जन्मपत्र्यामाः सर्वेऽपि गण्याः प्रतिगृहमिलिता जन्मवर्षा भवन्ति । स्वगृह का, उस का वा मूल त्रिकोण का चन्द्र, बुध अथवा किसी अन्य शुभ ग्रह से युक्त, दृष्ट वा विद्ध हो और जब वह पुण्यस्थान के नवांशक में हो तो धन के साथ राज्यप्राप्ति होती है ॥१३१॥ यदि स्वगेह आदि स्थित चन्द्र, बुध अथवा किसी अन्य शुभ ग्रह से युक्त, इष्ट अथवा विद्ध हो और जब वह जायास्थान के नवांश में हो तो उसे तत्काल रुपयों की प्राप्ति होती है ॥१३२|| अपने उच्च गेहादि मे स्थित चन्द्र, यदि बुध वा अन्य किसी शुभ मह से युक्त, दृष्ट तथा विद्ध होकर लाभस्थान के नवांश में हो तो कोटि संख्या में धन की प्राप्ति होती है ॥१३३॥ अपने उच्च गेहादि मं स्थित चन्द्रमा यदि बुध अथवा अन्य किसी शुभ ग्रह से युक्त, दृष्ट अथवा विद्ध होकर व्यय स्थान के नवांश में आता है तो सदा खर्च होता रहता है ।।१३४॥ लग्न से बारहवां व्ययस्थान होता है । जन्मपत्री में सभी अंक इसी प्रकार गिनने चाहिएं । प्रत्येक गृह में जन्मपत्री में शुभ ग्रह हो सकते 1, The text sometimes reads स्वीयगेहादिसंस्थिते and sometimes स्वीयतुजादिसंस्थिते or स्वीयगेहे स्वतुङ्गभे. I have followed 'A' which is consistent throughout 2. poभूयाद् for मूर्ति यात A., मूर्तेट्यात A1.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy