SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२७) सौम्यदृष्टेतेि' वापि सौम्यदृष्टे" स्वतुङ्गभे । निध्यंशके यदा चन्द्रो निधिभोगौ तदा खलु ॥१२५॥ सौम्ययुक्तेक्षिते वापि सौम्यदृष्टे' स्वतुङ्गमे । सुतांशके यदा चन्द्रः सुतो वापि तदा पुनः || १२६ ॥ सौम्ययुक्तेक्षिते विद्धं स्वीयगेहे स्वतुङ्गभं । यदा रोगांशके चन्द्रस्तदोद्वेगश्चतुष्पदे ॥ १२७॥ सौम्ययुक्तेक्षिते विद्धे स्वीयगेहे स्वभे । यदा भार्यांशके चन्द्रस्तदा भार्याशतं स्मृतम् ॥ १२८ ॥ सौम्ययुक्तेक्षिते विद्धे मृत्युभावे स्वतुङ्गभे । यदा मृत्यंशके चन्द्रस्तदा मृत्युरसंशयम् ॥१२९|| सौम्ययुक्तेक्षिते विद्धे स्वीयगेई स्वतङ्गभे । यदा पुण्यांश शुक्रस्तदा द्रव्यं स्त्रिया सह || १३० ॥ स्वोस्थ चन्द्र, बुध वा अन्य शुभ ग्रह से युक्त हो वा देखा जाय और जब वह चतुर्थस्थान के नवांशक में हो तो निधि और भोग दोनों की प्राप्ति समझनी चाहिये || १२५ || उच्च का चन्द्र यदि बुध वा अन्य देखा जाय और जब वह सुतस्थान के अवश्य कहना चाहिये ||१२६ || स्वगृह का वा उच्च का चन्द्र यदि बुध अथवा शुभ ग्रह से युक्त अथवा देखा जाय वा विद्ध हो और यदि वह रोगस्थान के नवांशक में हो तो उसे पशुचिन्ता कहनी चाहिये || १२७ || स्वगृह का वा उच्च का चन्द्र शुभ ग्रह से युक्त अथवा देखा वा विद्ध हो जाय और जब वह स्त्रीस्थान के नवांशक में हो तो उसके बहुत. विवाह कहने चाहिएं || १२८|| उच्च का चन्द्र, अष्टम भाव में बुध अथवा अन्य किसी शुभ ग्रह से युक्त, दृष्ट अथवा विद्ध हो, और जब वह अष्टम भाव के नवांशक में हो तो निश्चय ही उसकी मृत्यु कहनी चाहिये || १२६॥ किसी शुभ ग्रह से युक्त हो वा नवांशक में हो तो पुत्रजन्म स्वगृह का वा उच्च का शुक्र बुध अथवा किसी अन्य शुभ ग्रह से युक्त, दृष्ट अथवा विद्ध हो और पुण्यस्थान के नवांश में हो तो स्त्री-प्राप्ति के साथ धनप्राप्ति कहनी चाहिये || १३०|| 1. युते for क्षिते A. 2. विद्धे for दृष्टे A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy