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________________ (२६) सौम्याः सौम्यैरवस्थास्त्रशुभगृहखगैर्दुःखदाः शेषवर्षा इत्येवं जातकाद्वाप्यशुभशुभ फलं दर्शितं जन्मलग्नात् ॥१३५॥ जन्मतो यत्तमे गेहे यत्र स्युः सौम्यखेचराः। जन्मतस्ततमेब्दाहे लक्ष्मीर्भवति जन्मिनः ॥१३६॥ जन्मतो यत्तमे भावे यत्रापि करखेचराः । जन्मतस्तत्तमेब्दाहे विपद्भवति दुःखदा ॥१३१७/ जन्मतो यत्तमे गेहे यत्रैवं मिश्रखेचराः । जन्मतस्तत्तमेऽब्दाहे मिश्रं भवति निश्चितम् ॥१३८|| प्रकारान्तरेण जन्मदशा जन्मकुण्डल्याम् । मध्यग्रहेर्दशा पूर्णा बाह्यगैरद्धिका ततः । मूर्त्यस्तगैस्त्रिभागोना चैवं जन्मग्रहाद्दशा ॥१३९।। मृत्तिविभुर्यदि मूर्ति कार्याधिपतिश्च" वीक्षते कार्यम् । लग्नाधीशः कार्य कार्येशः पश्यति विलग्नम् ॥१४०॥ हैं जिस घर में शुभ ग्रह का सम्बन्ध हो उसमें सुख, पापग्रह के सम्बन्ध से दुःख होता है । इस प्रकार जन्म लग्न से फल कहना चाहिये ॥१३५।। जन्म लग्न से जितने घर में जहां पर शुभग्रह हों, जन्म से उतने ही वर्ष और दिन पर उसको मुख और धन होता है ।।१३६॥ जन्म लग्न से जितने भाव में पापग्रह हों, जन्म से उसने वर्ष में · उसको दुःख देने वाली विपत्ति होगी ॥१३७।। ___जन्मलग्न से जितने गृह में शुभग्रह आर पापग्रह दोनों हों, अन्म से उतने वर्ष में मिश्रफल अर्थात् सुख और दुःख दोनों निश्चित होते हैं ॥१३८॥ . मध्यग्रहों से पूर्ण दशा होती है। बाह्यगत ग्रहों से आधी दशा; लग्न और सप्तमस्थ ग्रहों से तृतीयांशोन दशा होती है । इस प्रकार जन्मकालिक ग्रहों से दशा होती है ।।१३।। . लग्नश यदि लग्न को, कार्येश कार्य को, अथवा लगेश कार्य को और कार्येश लग्न को देखे ॥१४०॥ 1. सौम्येरवस्थास्वाशुभगृहर वर्गोदुःख दाः for सौम्यवस्थारुचशुमगृहखगैर्दुखदा:A1 2 mi ssing in A 3. निश्चतम for जन्मिनः A, A1 4. जन्मिन: for निश्चितम A. 5. कुएडल्याः for कुण्डल्याम् A 6. कायौंघविभुश्च for कार्याधिपतिश्च A. 7. विलग्ने for विलमम A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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