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________________ ( २६ ) पच्छाकाले ग्रहाधीशो यत्र भावे भवेद्यदा । रिपुभावे घिया हीनो मित्रभावे फलाधिकः ॥ १२१ ॥ लाभस्थाने यदा चन्द्रः सौम्यो वा सोमजोदयः' । लाभेश वापि लग्नंशो लाभाधिक्यं तदा भवेत् ॥ १२२॥ व्ययस्थाने यदा चन्द्रः सौम्यो वा स्वगृहादिगः । व्ययेशो वापि लग्नेशो व्ययो भवति भूमिपात् ||१२३|| अंशकाभिप्रायेण कथयति । सौम्यदृष्टेक्षिते वापि सौम्यदृष्टे + स्वतुङ्गभं । यदा घनांशके चन्द्रस्तदावश्यं धनं धनम् ||१२४ || प्रश्नकाल में जिस घर का स्वामी जिस भाव में हो वैसा ही फल कहना चाहिये । यदि शत्रुभाव में हो तो बुद्धिहीन होता है, यदि मित्र भाव में हो तो अधिक फलदायक होता है || १२१|| यदि चन्द्र वा बुध लाभस्थान में हों और कुछ उदित हों, वे लाभेश वा लग्नेश होकर रहें तो उसको अधिक धन लाभ होता है || १२२|| चन्द्रमा वा बुध व्यय स्थान में स्थित होकर यदि स्वगृहादि में हों और वे यदि व्ययेश या लमेश हो जांय तो राजा से उसके धन का व्यय होता है || १२३ || अब चन्द्र अपने उच्च में रहते हुए बुध अथवा अन्य शुभ ग्रह से हो वा देखा जाय और जब न्वन्द्रमा धनस्थान के नवांशक में हो तो अवश्य ही बहुत धन होता है || १२४ || युक्त 1. सोमजादिक: for सोमजोदय: A 2 A AT add. लग्नेश बीते लग्नं धनेशो वीक्षते धनम् । धनवान् लग्नपे लग्ने धने च धनपो धनी ॥ लग्नेशधनपो लग्ने द्वौ धने च तदा धनी । चतुर्भङ्गयेऽपि सर्वेऽपि भावास्तरात्फलप्रदाः ।। लग्नस्य लग्नाधिपतेः सूर्यस्येन्दोरितस्ततः । प्रत्येकं तोरणे सौम्याः शुभान्तर चतुष्टयम् || for लाभाधिक्यं तदा भवेत् Bhreads व्ययो भवति भूमिपात | Bh. adds पृच्छाकाले गृहाधीशो यत्र भावो भवेद्यदि । रिपुभावे धिया हीनो मित्रभावे फलाधिकः ॥ 3. मुते - ofr हिते A. 4. विद्वे for दृष्टे A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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