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________________ ( १२२ ) उदासीने प्युदासीनस्त्वेवं दोषस्य निर्णयः ।। ६५२ ॥ इत्यष्टमस्थाने दोषप्रकरणम् । अथ जीवितमृत्युप्रकरणम् । शोऽभ्युदितो मृत्युपोऽस्तंगतः पुमान् । मृत्युप्रश्ने नरैर्वाच्यं रोगग्रस्तोऽपि जीवति ।। ६५३ ॥ लग्नेशोऽभ्युदितः प्रश्ने लाभेशोऽपि शुभेक्षितः । अस्तंगतेऽष्टमाधीशे शस्त्राविद्धोऽपि जीवति ।। ६५४ ॥ 2 लग्नेशोऽभ्युदितः प्रश्नेऽभ्युदितो मृत्युपो बली । षष्ठे वा छिद्रभावे वा चन्द्रे च म्रियते नरः ।। ६५५ ॥ षष्ठे चन्द्रं व्यये करे सद्योऽपि म्रियते नरः । चन्द्रेऽष्टमे धनं क्रूरः सद्यो मृत्युः सतां मतः ।। ६५६ ॥ लग्ने बौने चन्द्र सधी रोगः किलोदितः । अब जीवित मृत्यु प्रकरण कहते हैं । यदि मृत्यु प्रश्न में लग्नंश अभ्युदित होकर लग्न में और अष्टमेश, अस्त हो तो रोग प्रस्त भी मनुष्य जीता है || ६५३ || प्रश्न काल में लग्नेश, अभ्युदित हो, लाभेश शुभ ग्रहों से देखे जाते हों, और अष्टमेश श्रस्त हो तो मनुष्य शस्त्र से आघात होने पर भी जीता है ||६५४|| प्रश्न काल में लग्नेश अभ्युदित हो और बलवान् अष्टमेश अभ्युदित होकर षष्ठ वा अष्ठम में और चन्द्रमा भी इन दोनों भावों में हो तो मनुष्य मर जाता है ||६५५ ।। षष्ठ भाव में चन्द्रमा और व्यय में पाप ग्रह हो तो तभी मर जाता है, और चन्द्रमा श्रष्टम में हो, धन भाव में पाप ग्रह हो तो भी सद्यः मर जाता है ।। ६५६।। 1. शुभोदित: tor शुभोक्षत: A 1 2. For this line A1. reads लग्नंशोऽभ्युदितः प्रश्नेऽभ्युदितो मृत्युपो बली ।
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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