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________________ : (११२१ ) रक्तबन्धे भयं जाते क्षेत्रपालानुभावतः । दिनान्ताः सर्वलघु षट् त्रिकेऽष्टादशे स्थिताः || ६४८|| उदये मध्यसन्ध्यायां क्षेत्रपालाः पृथक् पृथक् । अतिचारे देवी गृह्णाति बालकं जवात् ।। ६४९ ।। स्थिरग्रहे स्थिरा ज्ञेया जलराशौ जलाश्रयाः । 2 स्थिरे राशौ स्थलदेव्यश्वरराशौ नरो ध्रुवम् || ६५० ।। स्त्रीराशौ युवतीदोषः क्रूरक्रूर ग्रहे पुनः । गोत्रदेव्या भवेद्दोषः शुक्र वृषतुलाश्रिते ।। ६५१ ।। 3 स्वपक्षे गोत्रजो दोषः परक्षेत्र परो मतः । शत्रुक्षेत्रे भवेच्छत्रुर्मित्रे स्वजनसम्भवः । क्षेत्रपालों के अनुभाव से दिनान्त में सब भावों में रहते हैं और उदय, मध्य सन्ध्या मे क्षेत्रपाल पृथक्-पृथक् छठे, तीसरे, भाठवें, दसवें भावों में क्रम से रहते हैं, इन स्थानों में यदि अतिचारी ह हों तो देवी बालक को हठात महया कर लेती है ।।६४८- ६४६ ।। स्थिर राशि में हो तो स्थिर जाने और जल राशि में जलाश्रय में और स्थिर राशि मे स्थल देवी का दोष, चर राशि में नर का दोष जाने ||६५० ।। स्त्री राशि में स्त्रीकृत, दोष, जाने यदि शुक्र वृष, तुला, मे हो वो जानना चाहिये || ६५१ । । इस प्रकार अपने घर में हो तो स्वगोत्रकृत, और परक्षेत्र में हो तो परकृतदोष, शत्रु क्षेत्र मे होने से शत्रुकृत, तथा मित्रक्षेत्र में हो तो स्वकीयबन्धुवर्गकृत, और उदासीन घर में हो वो उदासीन आदमी कृत दोष होता है ऐसा ही इसका निर्याय करें ।।६५२|| और पाप गृही मे पाप कृत दोष अपने गोत्र क देवी का उपद्रव 1. Two syllables are wanting in ms. Bh. supplies गृहे । 2. नर for श्चिर Bh. 3. The mss A, A1 begin from here.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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