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________________ ( १२३ ) 1 लग्ने चन्द्रे ने भानुः सद्यो मृत्युरसंशयम् ॥ ६५७ ॥ मेपलमोद प्राप्ते वृश्विकांशे त्वलीश्वरे । 2 मेषेशचन्द्रसंयुक्ते तदा मृत्युः क्षणाद्भवेत् ।। ६५८ ॥ लग्नपो मृत्युपथापि मृत्यौ स्यातामुभौ यदि । स्थितौ द्रेष्काण एकस्मिन् तदा मृत्युर्भवेदिह ।। ६५९ ।। लपो मृत्युपश्चापि चन्द्रयुक्तौ बलोत्कटौ । द्वाविंशतितमे त्र्यंशे तदा मृत्युर्भवेत्पुनः || ६६० ॥ 4 यथा स्वामिनि गेहं स्वं याति चौरेर्न मुच्यते । तथा लग्नं स्वके नाथे पश्यति म्रियते पुनः ।। ६६१ ॥ यथा गेहपतिः स्वामी यात्येव पुरतो ध्रुवम् । तथा लग्नस्थिते नाथे जीवत्येव न संशयः ।। ६६२ ॥ लग्न में रवि हो और सप्तम में चन्द्रमा हो तो बहुत शीघ्र रोग का उदय होता है, और लग्न मे चन्द्रमा, सप्तम मे रवि हो तो निश्चय सद्यः मर जाता है ||६५७॥ प्रश्न काल मे मेष लग्न हो और वृश्चिक का स्वामी (मंगल) वृश्चिक के नवमांश मे हो और मंगल, चन्द्रमा से युक्त हो तो उसी क्षया उसकी मृत्यु होती है ||६५८ ॥ लग्नेश और अष्टमेश दोनों मृत्यु भाव मे एक ही द्रेष्काणा में हों वो शीघ्र मृत्यु हो जाती है ।।६५६ ।। लग्नेश और अष्टमेश दोनों बलवान होकर चन्द्रमा से युक्त हों, और वे दोनों जिस किसी राशि में बाईसवें त्रिशांश में गत दो वा मृत्यु होती है ।। ६६० ।। जैसे अपने स्वामी के घर में गया हुआ चौर नहीं छूटता वैसे जिसको प्रश्न काल में लमेश लम को देखे वह मर जाता हे ||६६५ ।। जैस घर के मालिक अपने ग्राम को अवश्य जाते हैं वैसे अप्रेश यदि लय में हो तो अवश्य ही जीते हैं इस में संशय नहीं ||६६२ || 1. ०र्भवेदयम् for ०रसंशयम् A 2 प्रश्न for प्राप्ते Bh. 3. मेषांश for मेषेश Bh. 4. मुष्यते for मुच्यते Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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