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________________ क्रिते यकेवलादर्शः शिशुजन्मप्रकाशकृत् । श्रीमदेवेन्द्रशिष्येण श्रीहेमप्रभमुरिणा ॥३७३॥ __ इति पञ्चमभावे पुत्रप्रकरणम् रोगप्रश्ने बुधैर्वाच्यं सप्तमं रोगसंज्ञकम् । यावन्तः खेचरा लमऽथवा लमंशपाश्चगाः ॥३७४।। तावन्तः पुरुषा वाच्या रोगिणोऽपि समीपगाः । पुग्रहः पुरुषस्तत्र स्वीगृहे प्रमदाः पुनः ॥३७॥ रोगस्थाने चर ऊवं संचरन् गृहमध्यतः । उपविष्टः स्थिरे रोगी सुप्तो वाच्यो द्विदेहके ॥३७६।। चरेऽष्टमे परे देशे स्थिरे तत्रैव संस्थितः । ग्रामद्वितयमध्यस्थो रोगी भवेद्' द्विदेह के ॥३७७।। श्रीदेवेन्द्र के शिष्य श्रीहेमप्रभसूरि ने पुत्र जन्म पर प्रकाश डालने वाला इस एकमात्र श्रादर्श ग्रन्थ का निर्माण किया है ॥ ३७३ ॥ रोगप्रश्न में षष्ट स्थान रोगसंज्ञक समझना । फिर लग्न वा लग्न के आस पास मे जितने ग्रह होवें उतने पुरुष रोगी के पास होते है। वहां पुरुष प्रह जितने रहं उतने पुरुष और स्त्रीग्रह जितने रहें उतनी स्त्रियां लण रहती है ।। ३७४-७५ ॥ रोगस्थान चर राशि हो तो रोगी को घर के ऊपर में चलता हुआ समझना चाहिये । यदि स्थिर राशि हो तो घर के मध्य में बैठा हुआ कहना चाहिये, द्विस्वभाव राशि में हो तो रोगी को मोता हुमा समझना चाहिये ।। ३७६ ॥ लम से अष्टम स्थान यदि चर राशि का हो तो रोगी परदेश में रहे, यदि स्थिर राशि रहे तो वहीं रहे और यदि द्विस्वभाव वाले राशि रहें तो दो गांव के बीच में रोगी रहे ॥ ३७७ ।। ____ 1.झेयं for वाच्यं A. 2. भोग for रोग A, A1 3. द्विदेहिके A. विदेहके A. 4. पर for परे A. 6. the text reads भवति for भवेत।
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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