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________________ चत्वारि खेटयुग्मानि भवन्ति यदेकदा । तदापत्यद्वयोत्पत्तिः पृच्छालग्ने सतां मता ॥३६६॥ तावत्संख्यान्यपत्यानि प्रश्ने वाच्यानि पण्डितः। सम्पूर्णदृष्टयो वापि यावत्संख्याः शुमा ग्रहाः॥३६७॥ स्त्रीग्रहाणां तु संख्यातः पुत्रीसंख्याभिधीयते । पुरुषग्रहसंख्याने पुत्रसंख्या स्फुटा मता ॥३६८।। पश्चमावानुमानेन ग्रहदृष्टिवशेन वा । पुत्रसंख्या ग्रहाच्या मृत्युसंख्याधर्मग्रहः ॥३६९॥ सर्वग्रहेक्षिते मर्म तुंगकेन्द्रगतग्रहः । नृपतुल्यो भवेत्पुत्रो ग्रहदृष्टिप्रभावतः ॥३७०॥ एकः पुत्रो रवौ धीस्थे चन्द्रे तत्र सुताद्वयम् । भौमे पुत्रालयो वाच्या बुधे पुत्रीचतुष्टयम् ॥३७१।। गुरौ गर्भ सुताः पंच षट्पुत्राश्च सिते मताः । शनौ पुत्र्यो ध्रुवं सप्त तुंगे पुत्रा महद्धिकाः ॥३७२॥ प्रश्न लग्न में चार युग्म ग्रह यदि एकत्र रहें तो दो पुत्र कहने चाहियें ॥ ३६६ ॥ प्रश्नकुण्डली मे पूर्ण दृष्टि वाले जितने शुभ ग्रह रहें उतनी सन्तान कहनी चाहिये ।। ३६७ ।। स्त्रीग्रहों की संख्या से कन्याओं की संख्या और पुरुषग्रहों की संख्या से पुरुषों की संख्या कहनी चाहिये ।। ३६८॥ पञ्चम स्थान की स्थिति, प्रह की दृष्टि, पुत्रसंख्या का ग्रह और पापग्रहों से मृत्युसंख्या के विचार से सन्तानों की संख्या और दीर्घायु, अल्पायु विचार कर फल कहना चाहिये ।। ३६६।। पक्रम स्थान को यदि सभी उस ओर केन्द्र के ही ग्रह देखें तो उसग्रह दृष्टि के प्रभाव से गजतुल्य पुत्र की उत्पत्ति हो ।। ३७० ॥ पञ्चम स्थान में यदि एक रवि रहे तो एक लड़का, सोम रहे तो दो लड़की, मंगल रहे तो तीन लड़का, बुध रहे तो चार लड़की होनी चाहिये ।। ३७१॥ गुरु यदि पंचम स्थान में रहें तो पाच पुत्र होवें, शुक रहें सो. ६ पुत्र, और शनि रहे तो सात लड़की, इस प्रकार यदि वे उसके हों सो समृद्धिशाली पुत्र होवें ॥ ३७२ ॥ 1.प्रात: for वशेन वा A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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