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________________ ( ५२ ) निधिप्रश्ने विलमे बेद्राहुर्भवति खेचरः । छिद्रे रविस्तर वाच्यं निधानं नैव लभ्यते ||९६३|| प्रश्नकाले यदा मूर्ती तु वा सप्तमेऽपि वा । दशमे वा भवेत् शुको निधिरस्तीति निश्चितम् || २६४ ॥ मूर्ती वा तुर्यगे वापि सप्तमे च' गृहे यदि । दशमे वा भवेज्जीवः सचन्द्रो निधिदायकः || २६५॥ सजीवे चन्द्रशुक्रे वा तुयें गेहे धनं भवेत् । सरत्नहाटकं रूप्यं घटिताघटितं भवेत् || २६६ || बुधचन्द्रो गुरुः शुक्रो धने वा हिghar" | प्रयच्छन्ति निधिं स्वीये चान्यं या बलशालिनः || २६७|| छिद्रस्थाने स्थितास्त्वेतेऽपत्ये वा खेचरा धनम् । निधिं यच्छन्ति पूर्वेषां विना " नैवेद्यपूजनात् || २६८ || 4 " निधि प्रश्न में यदि राहु लग्न में हो और सूर्य अम स्थान में हो तो निधिलाभ नहीं कहना चाहिये ।।२६३|| प्रश्नकाल में यदि लग्न में, चौथे, सातवें तथा दसवें स्थान में शुक रहे तो निधि अवश्य ही कहनी चाहिये || २६४|| प्रश्नकाल में यदि केन्द्रस्थान में गुरु हो और वह चन्द्रमा से युक्त हो तो निधि अवश्य मिले || २६५ || चन्द्र और शुक्र, गुरु के साथ चौथे स्थान में रहें तो उसके घर में अवश्य धन रहे। उसके पास रत्न, सुवर्ण श्रादि मूल तथा अलंकार अवस्था में रहें ।। २६६ ।। बली बुध, चन्द्रमा, गुरु वा शुक्र धनस्थान वा चतुर्थ स्थान में सहें वो उसे अपनी या अन्य की निधि प्राप्त हो ॥ २६७॥ अम वा पचम स्थान में ग्रह रहें तो उनकी बिना बेलि तथा नैवेद्य द्वारा पूजा से ही पूर्वजों की निधि प्राप्त होती है ॥२६८|| 1. वा for व A. 2. च for वा A. 3. ऽपिवा for अथवा A. 4. स्वीयं for स्त्रीये A. D. प्यन्ये for ऽपत्ये A 6. बलि for विना A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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