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________________ (५१) स्थानत्रयेषु सौम्यानिधिः स्थानत्रये मतः । धनस्याने बलं' द्रव्यं तुर्यगेहे महानिधिः ॥२५८॥ छिद्रस्थाने च पूर्वेषामतीतानां महानिधिः । शुभखेटानुसारेण रूप्यस्वर्णादि निर्णयः ॥२५९।। करे तूर्यपतौ द्रव्यं विद्यते लभ्यते नहि । क्षीणचन्द्रेऽपि तूर्यस्य' लभ्यते तत्र वत्सरे ॥२६०॥ जायायां छिद्रगेहे वा मंगलो यदि खेचरः । तदा शत्रुहतानां चाप्यतीतानां निधिधु वम् २६१।। राहुशनी मृतौ भावपृच्छायां खेचरौ क्रमात् । व्यन्तरत्वं गतानां च द्रव्य भवति निश्चितम् ॥२६२॥ तीन स्थानों में यदि शुभ ग्रह हों तो घर के तीन स्थानों में निधि होती है । धनस्थान में रहें तो सेना और द्रव्य, चतुर्थ स्थान में रहें तो महासम्पत्ति कहनी चाहिये ।।२५८॥ अष्टम स्थान में यदि शुभ ग्रह हों तो अपने पूर्वजों की महा निधि कहनी चाहिये । इस प्रकार शुभ ग्रहों के अनुसार रुपये सोने श्रादि का पता लगाना चाहिये ।।०५६।। पाप ग्रह यदि चतुर्थ स्थान के स्वामी हो तो द्रव्य अवश्य हो, पर मिले नहीं । यदि क्षीण चन्द्र भी चतुर्थ स्थान का स्वामी हो तो उस वर्ष में धनप्राप्ति होती है ॥२६॥ सप्तम वा अष्टम स्थान में यदि मंगल हो तो युद्ध में मृत पूर्वमों की निधि अवश्य होती है ।।२६१।। प्रश्नकाल में राहु और शनि यदि अष्टम भाव में हो तो मृत पूर्वजों का द्रव्य होना निश्चित कहा गया है ।।२६२॥ 1. च तद् for बलं A. 2. शुभे for शुभ A, 3. स्वर्गरूप्यादि for सप्यस्वर्णादि A. 4. तत्रस्थे for तूर्यस्य A, तूर्यस्मे Bh. b. The text reads जातायां A. 6. शास्त्र for शत्रु A. शस्त्र Bh. 7. विधिo for निधि A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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