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________________ पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्म क्रियाप्रतिपा दिव्युपरत क्रियानिवर्तीनि।। त्र्येक योग काययोगा योगानाम।। एकाश्रयेसवितर्कवीचारे पूर्वे।। अवीचार द्वितीयम्।। वितर्कः श्रुतम्।। वीचारोऽर्थव्यञ्जन योग संक्रान्तिः।। सम्यग्दृष्टि श्रावक विरतानन्त वियोजक दर्शन मोहक्षप कोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिनाः क्रमशोऽसंख्येय गुणनिर्जराः।। पुलाकबकुशकुशीलनिर्ग्रन्थस्नातकाः निर्गन्थाः।। संयम श्रुतप्रतिसेवना तीर्थलिंगलेश्योपपादस्थान विकल्पतः साध्याः।। इति नवमोऽध्यायः।। मोहक्षयाज्ज्ञान दर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम।। बन्धहेत्व भावनिर्जराभ्यां कृत्स्न कर्मविप्रमोक्षो मोक्षः।। औपशमिकादिभव्यत्वानां च। अन्यत्र केवल सम्यक्त्वज्ञान दर्शन सिद्धत्वेभ्यः।। तदनन्तरमूर्ध्वं गच्छत्यालोगन्तात्।। पूर्व प्रयोगादसंगत्वाबन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्च।। आविद्धकुलाल चक्रबद्व्यपगतलेपालांबुवदेरण्डबीजादग्निशिखाबच्च।। धर्मास्तिकाया भावात्।। क्षेत्र कालगतिलिग तीर्थ चारित्र प्रत्येकबुद्धबोधित ज्ञानावगाहनान्तरसंख्याल्पबहुत्वतः साध्याः।। इति दशमोऽध्यायः।।
SR No.009388
Book TitleTattvartha Sutra Mool
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages15
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P005
File Size1 MB
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