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________________ दृष्टि का विषय ही समझना अर्थात् मिथ्यात्वी ही समझना । सम्यग्दर्शन के पश्चात् सम्यग्ज्ञान कैसा होता है, वह बतलाते हैं - 60 गाथा ६७३-अन्वयार्थ - 'एक साथ सामान्य - विशेष को विषय करनेवाला ज्ञान सम्यग्ज्ञान कहलाता है क्योंकि ज्ञान आदर्श (दर्पण ) - समान है तथा ज्ञेय, प्रतिबिम्ब समान है।' भावार्थ- 'जैसे दर्पण और दर्पण में रहे हुए प्रतिबिम्ब का युगपत प्रतिभास होता है, इसी प्रकार सामान्य-विशेष को युगपत् विषय करनेवाला ज्ञान, सम्यग्ज्ञान कहलाता है, अन्य नहीं; (अर्थात् कोई कहे कि आत्मा पर को नहीं जानता ऐसी व्यवस्था होने से आत्मा पर को जानता है ऐसा कहना मिथ्यात्व समान है, तो यहाँ बतलाते हैं कि वह ऐसा नहीं है) क्योंकि ज्ञान को दर्पण समान (अर्थात् यदि कोई कहे कि ज्ञान पर को जानता है, ऐसा नहीं लेना तो उन्हें यहाँ बतलाते हैं कि यदि ऐसा लिया जाये तो, ज्ञान की ही सिद्धि नहीं होगी) तथा उसमें रहे हुए विषय को (अर्थात् ज्ञेय को) प्रतिबिम्ब समान मानने में आया है।... '
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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