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________________ आत्मज्ञानरूप स्वात्मानुभूति परोक्ष या प्रत्यक्ष 61 १२ आत्मज्ञानरूप स्वात्मानुभूति परोक्ष या प्रत्यक्ष किसी को प्रश्न होता हो कि जिस स्वात्मानुभूति का वर्णन किया गया है कि जो निश्चय सम्यग्दर्शन है, वह प्रत्यक्ष है या परोक्ष है और वह किस प्रकार के क्षायोपशमिक ज्ञान से होती है ? उसके उत्तररूप पंचाध्यायी पूर्वार्द्ध की गाथा गाथा ७०६-अन्वयार्थ-‘तथा विशेष में यह है कि स्वात्मानुभूति के समय में जितने प्रथम के वे मतिज्ञान और श्रुतज्ञान, वे दो रहते हैं उतना, वे सब साक्षात् प्रत्यक्ष की भाँति प्रत्यक्ष है, अन्य अर्थात् परोक्ष नहीं । ' भावार्थ-‘तथा इन मति और श्रुतज्ञानों में भी इतनी विशेषता है कि- (पहले इन दोनों ज्ञान को परोक्षरूप से प्रतिपादित किया है, इसलिए अब इनकी विशेषता बतलाते हैं अर्थात् अपवाद बतलाते हैं) जिस समय इन दोनों में से कोई एक ज्ञान द्वारा स्वात्मानुभूति होती है, उस समय ये दोनों ज्ञान भी अतीन्द्रिय स्वात्मा को प्रत्यक्ष करते हैं इसलिए ये दोनों ज्ञान भी स्वात्मानुभूति के समय में प्रत्यक्षरूप हैं, परन्तु परोक्ष नहीं ।' अर्थात् सम्यग्दर्शन, वह अनन्तानुबन्धी कषाय चौकड़ी और दर्शन मोह के उपशम, क्षयोपशम अथवा क्षय से होता है, परन्तु उसके साथ ही नियम से सम्यग्ज्ञानरूप शुद्धोपयोग उत्पन्न होता होने से उस शुद्धोपयोग को ही स्वात्मानुभूति कहा जाता है कि जो ज्ञानावरणीय के क्षयोपशमरूप होती है और वह शुद्धोपयोग अर्थात् स्वात्मानुभूति विभावरहित आत्मा की अर्थात् शुद्धात्मा की होने से उसे निर्विकल्प स्वात्मानुभूति कहा जाता है; अर्थात् स्वात्मानुभूति के का में मनोयोग होने पर भी तब मन भी अतीन्द्रियरूप परिणमने से उसे निर्विकल्प स्वात्मानुभूति कहा जाता है।
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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