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________________ 2. खुद्दाबन्द (क्षुद्रक बन्द)कर्म सिद्धान्त की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण खण्ड है जिसमें मार्गणास्थानों के संदर्भ में जीव की बन्धक- अबन्धक स्थितियों को समझाया गया है। इसमें 11 अनुयोगों (एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व, काल, व अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा मंग विचय, द्रव्य प्रमाणनुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शानुगम, नाना जीवों की अपेक्षा काल व अन्तर, भागाभागा नुगम, व अल्पबहुत्वानुगम, ) के पूर्व प्रस्ताविक कप में सत्व की पूरूपणा 13 अधिकारों में की गई है। स्वामित्व अनुगम में 91 सूत्र (मार्गणानुक्रम में कौन से गुण पर्याय वाले जीव के कौन से भाव उत्पन्न होते हैं और वह किन लब्धियों को प्राप्त करता है, का वर्णन है) कालानुगम में 216 सूत्र (गति, इन्द्रिय, काय की मार्गणागत उत्कृष्ट व जघन्य अवधि) अन्तर प्ररूपणा में 151 सूत्र के माध्यम से मार्गणाक्रम में उत्कृष्ट व जघन्य अन्तर काल का विशद वर्णन है। द्रव्य प्रमाणानुगम में 171 सूत्र हैं जिसमे गुणस्थान योग व मार्गणाक्रम से जीवों की संख्या तथा आश्रय से काल व क्षेत्र का विस्तार बतलाया गया है। क्षेत्रानुगम के 124 तथा स्पर्शानुगम के 271 सूत्रों में स्वविशिष्टता के आधार पर जीवों का विवेचन किया गया है। कालानुगम के 55 सूत्रों में नाना जीवों के काल का वर्णन है। अन्तरानुगम के 68 सूत्रों में नाना जीवों के कालान्तर का वर्णन है। अल्पबहुत्व अनुगम में 106 सूत्र हैं जिसमें 14 मार्गणाओं के आश्रय से जीवसमास का तुलनात्मक द्रव्य प्रमाण बताया गया है। अंतिम महादण्ड चूलिका में 79 सूत्र है जिसमें मार्गणा विभाग को छोड़कर गर्भप्रक्रान्तिक- मनुष्य पर्याप्ति से लेकर निगोद जीवों के जीवसामासों का अल्पबहुत्व प्रतिपादन है। इस खण्ड में कुल 1582 सूत्र है। 3.बंधमित्तसामित्तविचय (बंध स्वामित्व विचय)इस खण्ड में सभी कर्मों का बंध करने स्वामि दो का विचार किया गया है। किस गुणस्थान में किन कर्म प्रकृतियों का बंध हो सकता है और किसका नहीं इसकी विवेचना की गई है। इस खण्ड के कुल 324 सूत्रों में से गुणस्थानक क्रम में जीव की बन्ध प्रकृति का वर्णन करने वाले आरम्मिक 42 सूत्र हैं। 4.वेदना खण्डकर्म प्राकृति के 24 अधिकारों में से दो प्रथम अनुयोगों का नाम वेदना खण्ड है। कृति अनुयोग द्वारा में कुल 75 सूत्रों में से प्रथम 44 सूत्रों में मंगल-स्तवन तथा शेष में कृति के 13 भेद स्वरूपों का वर्णन है। निक्षेपाधिकार में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन 4 निक्षेपों के द्वारा वेदना के स्वरूपों का स्पष्टीकरण किया गया है। 5.वर्गणा खण्डइसमें स्पर्श, कर्म और प्रकृति नामक तीन अनुयोग द्वारों का प्रतिपादन किया गया है।
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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