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________________ षटखण्डागम की संक्षिप्त विषय वस्त 1.जीवहाणइस खण्ड में जीव के गुणधर्म व पर्यायों का वर्णन 8 प्ररूपणाओं (सत, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व) में सन्निहित है। इसके अतिरिक्त नौ चूलिकाएं (प्रकृतिसमुत्कीर्तन, प्रथम महादण्डक, द्वितीय महादण्डक, तृतीय महादण्डक, उत्कृष्ट- स्थिति, जधन्य स्थिति, सम्यकत्वोत्पत्ति और गति-अगति) हैं। सत्प्ररूपणा के प्रथम सूत्र में णमोकार मंत्र का पाठ है। इस प्ररूपणा का विषय निरूपण ओघ-आदेश क्रम से किया गया है। ओघ में मिथ्यात्वादि 14 गुणस्थानों का वर्णन है तथा आदेश में इन्द्रिय, कायादि 14 मार्गणाओ का। इसमें 177 सूत्र है। जीवट्ठाण की दूसरी प्ररूपणा द्रव्यप्रमाणानुगम है। इसमें 192 सूत्रों द्वारा गुणस्थान व मार्गणा क्रम से जीवों की संख्या का निर्देश किया गया है। क्षेत्र प्ररूपणा के 92 सूत्रों में गुणस्थान व मार्गणा क्रम में ही जीवों के क्षेत्रों का वर्णन है। अन्तरप्ररूपण में अंतर का अर्थ विरह या विच्छेद से लिया जाता है। अर्थात् जीव विवक्षित होकर एक गुणस्थान को छोड़कर चला जाता है और पुन: उसी गुणस्थान में आता है इसे 'अन्तर काल' कहा जाता है। इस प्ररूपणा में 397 सूत्र हैं। भाव प्ररूपणा में 93 सूत्रों के द्वारा विभिन्न गुणस्थानों व मार्गणा स्थानों में होने वाले औपशामकादि 5 भावों का निरूपण किया है। अल्पबहुत्व प्ररूपणा में गुणस्थान व मार्गणास्थानवी जीवों की संख्या का हीनाधिकत्व व परस्पर सापेक्ष तलनीय वर्णन है। प्रकृति समुत्कीर्तन नाम की चूलिका के 46 सूत्रों में जीवों के गति-अगति, जाति आदि नाना भेदों का वर्णन है। दूसरी चूलिका में 117 सूत्रों के द्वारा यह बताया गया है कि प्रत्येक मूलकर्म की कितनी उत्तर प्रकृतियां एक साथ बाँधी जा सकती हैं और किस किस गुणस्थान में कितनी कर्म प्रकृतियों का क्षय जीव के द्वारा किया जा सकता है। तृतीय चूलिका द्वितीय महादण्क के दो सूत्रों में ऐसी कर्म प्रकृतियों की गणना की गई है जिनका बन्ध प्रथम सम्यकत्वोन्मुखी देव व 6 पृथ्वियों के नारकी जीव करते हैं। तृतीय दण्डक नाम की पाँचवीं चूलिका में भी दो सूत्र हैं जिसमें सातवीं पृथ्वी के सम्यकत्वोन्मुखी होने पर अन्य योग्य प्रकृतियों की चर्चा की गई है। छटवीं उत्कृष्ट स्थिति चूलिका में 44 सूत्रों के द्वारा बँधे हुए कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन किया गया है। इसी क्रम में 7वीं जधन्य स्थिति (43 सूत्र) चूलिका में इन बँधे कर्मों की जधन्य स्थिति दर्शाती है। 8वी सम्यक्त्वोत्पत्ति चूलिका के 16 सूत्रों में सम्यक्त्वोत्पत्ति योग्य कर्म स्थिति का निरूपण है। गति-अगति नाम की नवमी चूलिका में कुल 243 सूत्र है। इस प्रकार जीवट्ठाण में कुल 2375 सूत्र है। 17
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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