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________________ बन्ध के चार भेद हैं- 1. बन्ध 2. बन्धक 3. बन्धनीय 4. बन्ध-विधान। 6.महाबन्ध- इस खण्ड में निम्न लिखित अनुयोग द्वारों का विस्तृत वर्णन है- प्रकृति बन्ध : आत्मा से सम्बद्ध कर्म परमाणुओं में आत्मा के ज्ञानदर्शनादि गुणों को आवृत करना यह प्रकृति बन्ध है। स्थिति बन्ध : ये आये हुए कर्म परमाणु जितने समय आत्मा के साथ रहते हैं वह स्थिति बन्ध है। अनुभाग बन्ध : इन कर्म परमाणुओं में फल प्रदान करने का जो सामर्थ्य है वह अनुभाग बन्ध है। प्रदेश बन्ध : आत्मा के साथ बँधने वाले कर्म रूप सूक्ष्म पुद्गल परमाणुओं का ज्ञानावरणादि आठमूल कर्म प्रकृतियों के रूप में जो बँटवारा होता है उसे प्रदेश बन्ध कहते हैं। जैनआगम व गणस्थानश्वेताम्बर आम्नाय से जुड़े ग्रंथाकार आचार्य रत्नशेखर सूरीश्वरजी चौदह गुणस्थान नामक कृति में स्पष्टता करते हैं कि सरलता की दृष्टि से मोक्षमार्ग के निरूपण हेतु जैन आगम को पूर्वाचार्यों द्वारा 4 भागों में विभाजित किया गया है1. द्रव्यानयोगधर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल एवं जीवास्तिकाय तथा काल षट द्रव्यों की व्यवस्था का वर्णन। स्याद्वाद, नयवाद, सप्तभंगी, कर्मवाद तथा अध्यात्मक्रम-गुणस्थान का वर्णन द्रव्यानुयोग प्रधान ग्रंथों में मिलता है। यह गुणस्थान का सैद्धान्तिक या बोध भाग कहा जा सकता है। 2. गणितानुयोगयह चौदह राज लोक प्रमाण, मध्यलोक व विभिन्न द्वीपों - पर्वतों का वर्णन, शाश्वत अशाश्वत पदार्थों की गणितीय माप। इनसे सम्बन्धित जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, अनुयोग द्वार, जीवाभिगम आदि आगम ग्रंथ बृहद-लघु संग्रहणी, बृहद-लघु क्षेत्र समास आदि गणितानुयोग प्रधान हैं। 3. चरणकरुणानुयोगइसमें चारित्र पालन सम्बन्धी अणुव्रत-महाव्रत संदर्भित जानकारी समाहित है। दशैवकालिकआचारांग, प्रशमरति उपदेश पद आदि ग्रंथों में इसकी जानकारी मिलती है। इसे गुणस्थान का चारित्र भाग कहा जा सकता है। 4. धर्मकथानयोगभव्य जीवों को आध्यात्म पथ पर बढ़ाने हेतु प्रेरक कथाओं का समावेश इसमें किया गया है। उत्तराध्ययन, ज्ञाता-धर्म कथा(आगम-ग्रंथ) तथा त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र में इस अनुयोग की जानकारी मिलती है। अंत में यह कहा जा सकता है कि गुणस्थान विकास क्रम का ऐतिहासिक विवरण स्पष्ट करता है कि जैन दर्शन की दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराओं में गुणस्थान 19
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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