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________________ षट्खण्डागम और गणस्थान दिगम्बर जैन साहित्य में गुणस्थान के अध्ययन हेतु षटखण्डागम बीजरूप एवं एक आधारभूत ग्रंथ माना जाता है। कर्म सिद्धान्त विषयक यह ग्रंथ 6 खंडो में विभक्त हैं1. जीवट्ठाण 2. खुद्दाबन्ध बंधसामित्तविचय वेयणा वग्गणा 6. महाबंध। षटखण्डागम के रचियताऐसा माना जाता है कि आचार्य धरसेन षटखण्डागम के सम्पूर्ण ज्ञाता थे। वे अष्टांग निमित्तों के परागामी एवं प्रवचन वात्सल्य मुनि थे। अंगश्रुत के विच्छेद होने की आशंका से भयभीत होकर इन आचार्य ने महिमा नाम की नगरी में सम्मिलित दक्षिणापथ के आचार्यों के पास पत्र लिखकर दो योग्य शिष्यों को भेजने का आग्रह किया जो षट्खण्डागम का अध्ययन कर सकें। फलस्वरूप पुष्पदंत और भूतबली नाम के दो शिष्यो ने आचार्य घरसेन के पास पहुँचकर षट्खण्डागम सिद्धान्त की शिक्षा ग्रहण की। इस प्रकार आचार्य धरसेन ने अपनी श्रुत विद्या रूपी घरोहर की रक्षा की। षट्खण्डागम पर रचित घवला टीका के रचनाकार ने यदयपि इन दोनों शिष्यों के नामों का तो उल्लेख नहीं किया तथापि यतिसंघ को भेजे गये पत्र, फलस्वरूप पहुँचे दो शिष्य व इन शिष्यों की कठिन परीक्षा के बाद उनको षट्खण्डागम का श्रुतज्ञान प्रदान करने की बात की पुष्टि अवश्य की है। मूलग्रंथ के पाँच खण्ड प्राकृत भाषा में सूत्रबद्ध हैं। इनमें से पहले खण्ड के सूत्रों का सम्पादन आचार्य पुष्पदंत (ई० 66- 106) ने किया। उनका शरीरान्त हो जाने पर शेष 4 खण्ड आचार्य भूतबली (ई० 66- 156) ने पूरे किए जो यह मूलतः आचार्य पुष्पदंत की सोच व मेहनत का सम्पादन मात्र था। किन्तु इसका छठा खण्ड सम्पूर्ण विस्तार के साथ आचार्य भूतबली द्वारा बनाया गया है। टिप्पणीआचार्य धरसेन का समय भगवान महावीर के 683 वर्ष पश्चात का है। ऐसा माना जाता है कि वीर निर्वाण के 470 वर्ष पश्चात विक्रम का जन्म हआ जहाँ से विक्रम संवत में 470 वर्ष का अंतर है। इस क्रम में षटखण्डागम का रचनाकाल वीर निर्वाण के पश्चात 7वीं शताब्दी के अंत या 8वीं शताब्दी के प्रारम्म का है। इसी प्रकार विक्रम संवत के अनुसार इसकी गणना करे तो यह समय चौथी सदी का अंत या 5वीं सदी का प्रारम्म है। यदि यह मान लिया जाय कि विक्रम के राज्याभिषेक से ही विक्रम संवत का आरम्भ हुआ तो वीर निर्वाण व विक्रम संवत के मध्य 488 वर्ष का अंतर आता है क्योंकि राज्याभिषेक के समय विक्रम की उम्र 18 वर्ष की थी ऐसा विदवानों का मानना है। 16
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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