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________________ सम्मत्पत्ती विय सावय विरदे अणंत कम्मसे। दंसण मोहक्खवए कसाय उवसामए य उवसंते।। खवए य खीणमोहे जिणे य णियमा मेव असंखेज्जा | तव्विवरीदो कालो संखेज्जगुणा य सेडीओ | - षट्खण्डागम उपर्युक्त गाथाएं गौम्मटसार के जीवकाण्ड की गाथा 66-67 के रूप में भी उपलब्ध हैं। सम्मत्तुपत्ती सावय विरए अणंतकम्मसे। दंसण मोहक्खवए उवसामन्ते य उवसंते ।। खवए य खीण मोहे जिणे अ सेढ़ी भवे असंखिज्जा । तव्विवरीओ कालो संखेज्जगुणाइ य सेढ़ीए।। कर्म निर्जरा पर आधारित 10 अवस्थांएं सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिनाः क्रम शो संख्येयगुणानिर्जराः ।। 47 अ. 9।। त.सू. प्रो. सागरमल जैन गुणस्थान सिद्धान्त विश्लेषण में यह मानते हैं कि आचारांग निर्युक्ति षट्खण्डागम से प्राचीन है तथा गुणस्थान सम्बन्धी षट्खण्डागम की गाथाएं मूल न होकर इस नियुक्ति से अवतरित हैं। आचारांग निर्युक्ति एवं षट्खण्डागम तत्वार्थसूत्र में वर्णित 10 अवस्थाएं की 10 अवस्थाएं क्रम सं. 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. सम्यक्त्व उत्पत्ति श्रावक विरत अनन्त वियोजक | दर्शनमोहक्षपक कसायउपशमक(आचारांग में अनुपस्थि उपशान्त क्षपक क्षीणमोह जिन 15 -आचारांग निर्युक्ति सम्यग्दृष्टि श्रावक विरत अनन्त वियोजक दर्शनमोहक्षपक उपशमक उपशान्तमोह क्षपक क्षीणमोह जिन
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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