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________________ काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में क्रम नाम समस्या/परिस्थिति । उपदेश/समाधान । | 8. | चक्षुष्मान् अबतक सन्तान का मुख सन्तान का परिचय देकर देखने से पूर्व ही माता- भय दूर किया। |पिता का मरण हो जाता था, पर अब सन्तान का मुख देखने के बाद मरण होने लगा, अतः अपने ही बालकों को देखकर भयभीत होना। 9. | यशस्वी भोगभूमिज युगल बालकों का बालकों के नामकरण की नाम रखनेतक जीवित रहनेलगे। शिक्षा । माता-पिता बालकों का शिशुओं का रुदन रोकने 10. अभिचन्द्र बोलना व खेलना देखने तक हेतु उपदेश तथा उन्हें जीवित रहने लगे। बोलना एवं खेलना सिखाने की शिक्षा। शीत बढ गई, तुषार छाने सूर्य की किरणों से शीत चन्द्राभ |लगा तथा अतिवायु चलने निवारण की शिक्षा तथा लगी थी। | कर्मभूमि की निकटता का| ज्ञान। | मरुदेव | मेघ, वर्षा, बिजली, नदी, पर्वत नौका, छाता आदि के प्रयोग आदि के दर्शन। |का उपदेश तथा पर्वत पर |सीढ़ियाँ बनाने की शिक्षा। वर्तिपटल (जरायु) से वेष्टित वर्तिपटल (जरायु) दूर करने | 13. प्रसेनजित् युगल शिशु का जन्म देखकर का उपदेश। माता-पिता भयभीत। बालकों का नाभिनाल अत्यन्त नाभिनाल काटने का एवं नाभिराय लम्बा होने लगा तथा कल्पवृक्षों आजीविका के उपाय का का अत्यन्त अभाव हो गया।| उपदेश, औषधियों व धान्य पृथ्वी पर औषधि, धान्य व आदि की पहिचान तथा फलों की उत्पत्ति होने लगी। उनके प्रयोग की शिक्षा। 21
SR No.009364
Book TitleKaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanjiv Godha
PublisherA B D Jain Vidvat Parishad Trust
Publication Year2013
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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