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________________ ६०४ विपासश्रुते उपसम्पद्य-प्राप्य खलु 'विहरइ' विहरति-तिष्ठति । 'तए णं से ततः खलु स 'सोरियदत्ते दारए' शौर्यदत्तो दारकः 'मच्छंधे' मत्स्यवन्धः 'जाए अहम्मिए' जातोऽधार्मिकः-अधार्मिको जात इत्यन्त्रयः, 'जाव' यावत् 'दुप्पडियाणंदे दुष्प्रत्यानन्दः पापकर्मभिर्दुष्परितोष्यः-बहुविधपापकर्मनिरतो जात इत्यर्थः ॥ ० ४ ॥ ॥ मूलम् ॥ तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्ल वहवे पुरिसा दिनभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लिं एगट्रियाहि जउणं सहाणइं ओगाहिंति ओगाहिता बहहिं दहगालणेहि य दहमलणेहि य दहमद हि य दहमहणेहि य दहबहणेहि य दहपवहणेहि य पपुलेहि य जंभाहि यतिसराहि य मिसराहि य घिसराहि य विसराहि य हिल्लिरीहि य झिल्लिरीहि य जालेहि य गलेहि य कूडपासेहि य वक्रबंधेहि य सुत्तवंधेहि य बालबंधेहि य वहवे सहमच्छे य जाव पडागाइपडागे य गिण्हंति, गिरिहत्ता एगट्रियाओ भरेंति, भरित्ता कूलं गाहिति, कूलं गाहिता मच्छखलए करेंति, करिता आयवंलि दलयंति। अण्णे य से बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा आयत्रतत्तेहि मच्छेहि तलिएहि य अजिएहि य सोल्लिएहि य रायमगंलि वित्तिं कप्पेसाणा विहरति । अप्पणावि य णं से सोरियदत्ते बहुर्हि खण्हलच्छेहि य जाव पडागाइपडागेहि य तलिएहि य मजिएहि य सोल्लिएहि य सुरं च ५ आसाएमाणे४ विहरइ ॥ सू० ५॥ इस के पिता के पद पर नियुक्त कर दिया । 'तए णं से सोरियदत्ते दारए मच्छंधे जाए अहम्सिए जाव दुप्पडियाणदे' इस प्रकार यह अपने पिता के पद पर रहना हुआ मछली आदि की शिकार करने में निपुण हो गया, साथ में महा अधार्मिक एवं दुष्प्रत्यानंदि भी बन गया ॥सू०४।। तेने पितान! ५६ उपर नियुत ध्या. 'तए णं से सोरियदत्ते दारए मच्छंधे जाए अहम्मिए जाच दुप्पडियाणंदे' मा प्रमाणे ते पोताना पिताना ५४ ५२ २डीन માછલાં આદિને શિકાર કરવામાં કુશળ બની ગયે સાથે–સાથે મહા અધમી અને બીજાને દુઃખ પહોંચાડવામાં આનંદ માનવાવાળો બની ગયે. (સૂ) ૪)
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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