SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 623
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ८, शौर्यदत्तवर्णनम् ५९३ घातिनः कैवर्ताः, 'वागुरिया य' वागुरिकाच-मृगबन्धकाः लुब्धकाः 'साउणिया य' शाकुनिकाश्च-पक्षिघातकाः, एते सर्वे 'दिण्णभइभत्तवेयणा' दत्तभृतिभक्तवेतनाः प्राग्व्याख्यातमेतत् । 'कल्लाकल्लिं' कल्याकल्यं प्रतिदिनं 'वहवे' बहून् 'सोहमच्छे य' श्लक्ष्णमत्स्यांश्च-मत्स्यविशेषान् 'जाव' यावत् यावच्छब्देन 'खवल्लमच्छा, जुगमच्छा, विभिडिमच्छा, लंभणमच्छा' इत्यादिसंग्रहः । 'पडागाइपडागे य' पताकातिपताकान् मत्स्यविशेषान् , तथा 'अए य' अजांश्च 'जाव' यावत्-अत्र यावच्छब्देन-'एलए य रोज्झे य सयरे य मिगे य' इति संग्रहः। एडकांश्च रोज्झांश्चगवयान् सूकरांश्च 'माहिसे य' महिषांश्च तित्तिरे य' तित्तिरांश्च 'जाव' यावत्"वट्टए य, लावए य, कवोए य, कुक्कुडे य' वत्तकांश्च, लावकांच, कपोताच, कुक्कुटांश्च, 'मयूरे य' मयूरांश्च 'जिवियाओ ववरोति' जीविताद् व्यपरोपयन्ति मारयन्ति 'ववरोवित्ता' व्यपरोप्य 'सिरीयस्स' श्रीकस्य 'महाणसियस्स' महानणं सिरियस्स महाणसियस्स बहवे मच्छिया य वागुरिया य माउणिया य दिण्णभइभत्तवेरणा कल्लाकलिं वहवे सोहमच्छे य जाव पड़ागाइपडागे य अए य जाव महिसे य तित्तिरे य जाव मयूरे य जीवियाओ ववरोति' इस रसोइये के यहां पर अनेक नौकर चाकर काम करते थे, इनमें कोई मत्स्यघाति थे, कोई मृगघाति थे' कोई शाकुनिक-पक्षी का शिकार करने वाले थे। अपने२ काम का सबको इसकी ओर से वेतनादि दिया जाता था। ये लोग प्रतिदिन बहुत अधिक संख्या में, अनेक मत्स्य विशेषों की, यावत् 'पताकातिपताक' नाम के मत्स्यों की, बकराओं की, एडकों की, (घंटा) रोझों की, सूकरों की, मृगों की, तीतरों की, चिडियों की, लावा • पक्षियों की, कबूतरों की, कुक्कुटों की, और मयूरों की शिकार किया करते थे ‘ववरोवित्ता' शिकार कर इन सब जानवरों को ये लोग य वागुरिया य साउणिया य दिण्णभइभनवेयणा कल्लाकल्लि बहवे सण्डमच्छे य जाव पडागाइपडागे य णए य जाव महिसे य तित्तिरे य जाव मयूरे य जीवियाओ ववरोवेति ' ते २सायानी पासे भने ने।४२-या४२ म ४२ता जता, તેમાં કઈ મસ્મઘાતી (માછીમાર) હતા, કેઈ મૃગઘાતી, કેઈ શકુનિક-પક્ષીનો શિકાર કરવાવાળા હતા, તે તમામને તેઓના કામના પ્રમાણમાં તેના તરફથી પગાર આપવામાં આવતું હતું. તે માણસે હમેશા ઘણીજ સંખ્યામાં અનેક મત્સ્ય વિશેષે યાવત (તમામ પ્રકારના સભ્યો પતાકાતિપતાક નામના માછલાનાં, બકરાઓના, એડકે, રેઝ, सूवरो, भृगतामा, पासी, तेतरी, यामा, पापक्षीमा, भूतरी, ४४ामी, भोर वगैरेन शि२ ३२ता ता. ' ववरोवित्ता' शि२ ४शन शिरीमा तमाम जनवरी
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy