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________________ ५९४ विपाकश्रुते सिकस्य 'उवणेति' उपनयन्ति-समर्पयन्ति । 'अण्णे य' अन्ये च 'से' तस्य महानसिकस्य 'वहवे' बहवः तित्तिरा य तितिराश्च 'जाव मयूरा य' यावत् मयूरा 'पंजरंसि' पञ्जरे 'संणिरुद्धा' संनिरुद्धाः अतिरुद्धाः 'चिट्ठति' तिप्ठन्ति । 'अण्णे य वहवे पुरिसा' अन्ये च बहवः पुरुषाः 'दिण्णभइ-भत्तवेयणा' दत्तभृतिभक्तवेतनाः 'वहवे' बहून् तित्तिरे य' तित्तिरांश्च 'जाब मयूरे य' यावत् मयूराश्च 'जीवियए चेव जीवितकानेव 'णिप्पखंति निष्पक्षयन्ति-पक्षरहितान् कुर्वन्ति-जीवितानामेव पक्षिणां पक्षानुत्पाटयन्तीत्यर्थः, 'णिप्पक्खित्ता' निष्पक्षीकृत्य पक्षिणः पक्षरहितान् कृत्वा 'सिरीयस्स महाणसियस्स' श्रीकस्य महानसिकस्य 'उवणेति' उपनयन्ति-आनीय समर्पयन्ति । 'तए णं' ततः खलु से' सः 'सिरीए महाणसिए' श्रीको महानसिकः 'बहूणं बहूनां 'जलयस्थलयरखहयराणं' जलचरस्थलचरखेचराणां 'मंसाई' मांसानि कप्पणीकप्पियाई' कल्पनी'सिरीयस्स' उस श्रीक नाम के 'महाणसियस्स' महानसिक-रसोइये को 'उवणेति' दे दिया करते थे । 'अण्णे य से वहवे तित्तिरा य जाव मयूरा य पंजरंसि सण्णिरुद्धा चिटुंति' और भी अनेक इसके यहां तीतर से लेकर मयूर तक जानवर-पक्षी थे जो पिंजरों में बंद रहा करते थे । 'अण्णे य वह्वे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा' इस के यहां कितनेक ऐसे भी नौकर चाकर थे जो वेतन और भोजन पर नौकरी करते थे, जिनका काम यह था कि वे 'वहवे तित्तिरे य जाव मयूरे य जीवियए चेव निप्पक्छेति' तीतर से लेकर मयूर तक के समस्त जीते हुए पक्षियों के पंखों को उखाडते रहते थे, और निप्पक्खित्ता सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेति' उखाड कर फिर वे उन्हें ले जाकर उस श्रीक रसोइये को दे दिया करते थे । 'तए णं से सिरीए महाणसिए बहूणं जलयर-थलयर-खहयराणं 'सिरीयस्स' ते श्री नामना 'महाणसियस्स' महानसि-सोमाने ' उवणेति' भाषी रता ता. 'अण्णे य से बहवे तित्तिरा य जाव मयूरा य पंजरंसि सण्णिरुद्धा चिट्ठति' भने यी ५ अने: तेने त्यां तेतस्थी दान मार सुधीन ५क्षी तर पारामा पूरेखi रहतi sai ' अण्णे य वहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा' तमन्नतेने त्यांटसा भीत मेवा नौ४२ न्या४२ ५५] तारे ५॥२ अने समन भेजवान नारी श्ता हता, तेनुं आम थे हतु ते 'वहवे तित्तिरे य जाव मयुरे य जीवियए चेव निप्पक्छेति' तेतस्थी ने भार सुधीन तमाम पता पक्षीमानी यां माता उता, मने 'निप्पक्खित्ता सिरीयस्स महाणसिंयस्स उवणेति' माडी पछी तमा न ते रसायाने मापता हता. 'तए ग से सिरीए महाणसिए वहूणं जलयर-थलयरखहयराणं मंसाई कप्पणीकप्पियाई
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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