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________________ ९२० उत्तराध्ययनसूत्रे देवानामायुःस्थितिमाहमूलम्-साहियं सागर एकं, उक्कोसेण ठिई भवे । भोमेजाणं जहनेणं, दसासंसहस्तिया ॥ २१८ ॥ पलिओवममेगं तु, उक्कोलेण ठिई भवे । वंतरणं जहन्नणं, दसर्वालसहस्सिया ॥ २१९ ॥ पलिओमभेगं तु, वासलक्लेण साहियं । पलिओवमहमागं, जोइसेसु जहन्निया ॥ २२०॥ दोचेव सागराई, उक्कोसेण वियोहिया। सोहम्मम्मि जहन्नेणं, एंगं च पलिओनं ॥२२१॥ सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोण वियाहियाँ । ईसाणम्मि जहन्नेणं, साहियं पलिओर्वमं ॥२२२॥ सांगराणि य सत्व, उक्कोसेणं ठिई भवे । सणंकुमारे जहन्नेणं, दुन्नि ॐ सागरोवा ॥२२३॥ साहिया सागरी सत्त, उक्कोलेण ठिई भवे । माहिदम्मि जहन्नेणं, साहिया दुन्नि सागरा ॥२२४॥ दस चेव सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । बंभलोए जहँन्नेणं, संत्त ऊ सागरोवमा ॥२२५॥ चउदस सागराइं, उक्कोसण ठिई भवे । लंतगम्मि जहन्नेणं, दस उ सागरोवैमा ॥२२६॥ सत्तर सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । महासुक्के जहन्नेणं, चौदस सागरॉवमा ॥ २२७ ॥ अठारसे सागराइं, उकासेण ठिई भवे । सहस्सारम्मि जहन्नेणं, सत्तरर्स सांगरोवमा ॥२२८॥
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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