SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० २५ जयघोष - विजयघोषचरित्रम् ४७ { च पूर्वकर्माणिमात्रांचितकर्माणि क्षपयित्वा = क्षीणानि कृत्वा अन्ते अनुत्तरां - सर्वो-, त्कृष्टां सोक्षरूपामिति यावत् सिद्धिं प्राप्तौ । ' इति ब्रवीमि ' इत्यस्यार्थः पूर्ववद् बोध्यः ॥ ४५ ॥ इति श्री विश्वविख्यात - जगद्वलभ - प्रसिद्धवाचक- पञ्चदशभाषा कलित- ललितकला पालापक प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक- वादिमानमर्दक- श्रीशा इछत्रपति - कोल्हापुरराजप्रदत्त - " जैनशास्त्राचार्य " - पदभूषितकोल्हापुरराजगुरु - बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्मदिवाकर - पूज्य श्रीवासीलालवतिविरचितायाम् "उत्तराव्ययन सूत्रस्य" प्रियदर्शिन्याख्यायां व्याख्यायाम् -' -' यज्ञीयाख्यं ' नाम पंञ्चनिशतितमममध्ययनं सम्पूर्ण ||२५|| 'खवित्ता पुण्यकरसाई' इत्यादि -- अन्वयार्थ – (जयघोसे विजय घोले- जयघोषविजयघोष ) जयघोष - विजयघोष ये दोनों (लंजसेण तवेण-संयमेन तपसा) सत्रह प्रकार के संयम एवं वारह प्रकार के तपकी आराधनासे (पुव्वकस्साहं खवित्ता पूर्वकर्माणि क्षपयित्वा ) पूर्वसवसंचित कर्मोंको नाश करके (अनुत्तरां सिद्धिं पत्ताअनुत्तरां सिद्धि प्रासी) सर्वोत्कृष्ट मोक्षरूपसिद्धिको प्राप्त हुए। (त्तिवेमिइति ब्रवीमि ) हे जस्तू ! ऐसा मैं भगवान महावीर के कथनानुसार कहना है ।४५ | || इस प्रकार पचीया अध्ययनका हिन्दी अनुवाद संपूर्ण ||२५|| " सविता पुव्वकमाई " - इत्यादि । अन्वयार्थ-से जयधोसे विजयधोले-सः जयघोषविजयघोषां भयघोष विन्न्यघोष मे तेथे संजमेण तवेण-संगसेन तपसा २त्तर प्रारना संयम अरे यार प्रभारना तथनी माराधनाधी कमाई एविता-पूर्वकर्माणी क्षपनि पूर्वभव अंति भेन नाशरी ने वन्तर सिद्धि पत्ता - अनुत सिहिं ग्रामा सर्वोष्ट मोदिने प्राप्त या चितिवीमि हे ! याहुं लगवान महावीरता प्रधनमनुसार ६ ॥ ४५ ॥ શ્રી ઉત્તરાયન સૂત્રના પીય નામના પીરામાં ધ્યેયન शुभराती बाषा र सं२४ ॥
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy