SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 623
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - उत्तराध्ययनसूत्रे 'अह पच्छा ' इति । अथ अज्ञानफलानि अज्ञानोत्पादकानि कर्माणि कृतानि तानि पश्चाद-अबाधोत्तरकालम् , 'उदीयन्ते 'अज्ञानरूपेण अलर्क-मूपिफरिपरिकारवद् उदितानि भवन्ति, एवम् अमुना प्रकारेण कर्मविपाश्म-कर्मणः फल, ज्ञात्वा हे शिष्य ! आमानम् आश्वासय स्वस्थीकुरु, 'सय मतानामेव ज्ञानावरणीयफर्मणा कुत्सित फलमेतत् , यदहं न जानामि-प्रश्नोत्तरमिति विज्ञाय स्वस्थो भन, न तु तनिमितक विपाद कुरु इत्यर्थः । 'कम्मा' इति बहुपचन कर्मनन्धहेतूना बहुत्वात् । । ___ अन्वयार्थ-(कडाऽनाणफला कम्मा-कृतानि अज्ञानफलानि कर्माणि) गुर्वादिकोकी निंदा आदिसे पूर्वभवमे उपार्जित तथा ज्ञानमें अतराय डालने वाले-ज्ञान के निरोधक-ऐसे ज्ञानावरणीयादिक कर्म अपने अबाधाकाल के बाद (उइज्जति-उदीयन्ते) पागल कुत्ते अथवा पागल चूहेके विष के विकार की तरह अज्ञानरूप से उदय में आते हैं। (एव कम्मविवागयएव कर्मविपाककम्) इस प्रकार कर्म के फल को (नच्चा-ज्ञात्वा) जानकर हे शिष्य ! (अप्पाण आसासि-आत्मान आश्वासय) तुम अपनी आत्मा को कुछ नही आने पर-दूसरों के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकने पर धैर्य वधाओ-इस निमित्त को लेकर विपाद मत करो। भावार्थ-प्रज्ञापरीपह को जीतने के लिये सूत्रकार साधुओं के लिये शिक्षा देते हैं कि जो जैसा करता है उसे फल भी वैसा ही मिलता है। बबुल का झाड बोने पर कोई उससे आम्रफल प्राप्ति की आशा करे तो व्यर्थ है। इसी प्रकार पूर्वभव मे जिस जीव ने जिन २ मन्वयार्थ कडाऽनाणफला कम्मा-कृतानि अज्ञानफलानि कर्माणि पूनम ગુરુ આદિની નિંદાથી ઉપાજીત તથા જ્ઞાનમાં અતરાયનાખવારૂપ-જ્ઞાનના નિરાધકमेवा ज्ञानावरणीयाहि भ पतन पछी उइज्जति-उदीयन्ते ७७४।। કુતરાના અથવા વકરેલા ઉદરના વિશ્વના વિકારની માફક અજ્ઞાન રૂપથી ઉદયમાં माव छ एव कम्मविवागय-एव कर्मविपाककम् मा २ भनाणन नच्चा-ज्ञात्वा यी है शिष्य! आपाण आसासि-आत्मान आश्वासय त पाताना मात्भाभा કાઈ ન આવવાથી બીજાના પ્રશ્નોને ઉત્તર આપી શકતા નથી એ જાણીને આ બધાના નિમિત્તને લઈ વિષાદ ન કરે ભાવાર્થ--પ્રજ્ઞાપરીષહને જીતવા માટે સૂત્રકાર સાધુઓ માટે શિક્ષા રૂપથી કહે છે કે, જે જેવું કરે છે, તેને તેવું ફળ મળે છે કોઈ બાવળનું ઝાડ વાવીને તેમાથી આબાના ફળની આશા રાખે છે તે વ્યર્થ છે
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy