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________________ १७८ उत्तराध्ययनसूत्रे निरर्थक स्यात् , यथा नव पूपा दशदाडिमानीत्यादिनाक्य सम्बन्धरहित निरर्थक भवति। अपि च-लौकिका अपि शास्ता:प्रथमवोऽयं दृष्ट्वा मून कुन्ति, अर्थमन्तरेण सूनस्यानिष्पत्तेः । तथा चोक्तम्-- __ " अत्थ भासइ अरिहा, तमेव सुत्तीरेंति गणधारी। अत्थ पिणा च मुत्त, अणिस्सिय केरिस होइ" ॥१॥ छाया--अर्थ भापतेऽईन् , तमेव सत्रीकुर्वन्ति गणधारिणः । अर्थ विना च मूत्रम् , अनिश्रित कीदृश स्यात् ॥ १॥ किञ्च-" अत्थ भासइ अरिहा, सुत्त गुफति गणहरा निउणा ।" अपरञ्च-सासणस्स हियट्ठाए, ततो मुत्त पात्तई ॥ यदप्युक्त-पेटिकावद् वादर सूत्रम् , अर्थस्तु अणुरिति तदप्यसत्, यतस्तस्या पेटिकाया एक वस्त्रमादाय तेनानेकाः पेटिका वध्यन्ते, तथैकेनार्थेन बहूनि सूत्राणि कारण कि अर्थ के विना निश्रारहित सूत्र हो ही नहीं सकता है । यदि वह होता है तो "नवपूपा दशदाडिमा" आदि वाक्य की तरह निरर्थक और असयद्ध ही होगा। लौकिक शास्त्र के जानने वाले भी तो प्रथम अर्थ को देखकर ही सूत्र की रचना किया करते हैं। क्यों कि अर्थ के विना सूत्र की निष्पत्ति नही होती है। कहा भी है अत्य भासइ अरिहा, तमेव सुत्ती करेति गणधारी । अत्थ विणा च सुत्त, अणिस्सिय केरिस होइ ॥१॥ अत्य भासइ अरिहा, सुत्त गुफति गणहरा निउणा । सासणस्स दियद्वाग, ततो सुत्त पवत्तई ॥२॥ तीर्थकर भगवान पहिले अर्थ की प्ररूपणा करते हैं और उसी अर्थ को गणधर भगवान सूत्ररूप में गुथते है । १। કે અર્થના વિના નિશ્રા રહિત સૂત્ર થઈ જ શકત નથી કદાચ તે હોય છે, તે " नवपूपा दशदाडिमा" माहि पायनी मा नि२४ सने समय कानु હોય લૌકિક શાસ્ત્રના જાણવાવાળા પણ પ્રથમ અર્થને જોઈને સૂત્રની રચના કર્યો કરે છે કેમ કે અર્થના વગર સૂત્રની ઉત્પત્તિ થતી નથી કહ્યું પણ છે કે अत्थ भासइ अरिहा, तमेव सुत्तीफरेंति गणधारी। अत्थ विणा च सुत्त, अणिस्सिय केरिस होइ ॥१॥ अत्थ भासइ अरिहा, सुत्त गुफति गणहरा निउणा। समणस्स हियहाए, ततो मुत्त पवत्तई ॥२॥ તીર્થકર ભગવાન પહેલા અર્થની પ્રરૂપણા કરે છે, અને એજ અર્થને ગણધર ભગવાન સૂત્રના રૂપમાં ગૂથે છે અથના વગર સૂત્ર નિશ્રા,
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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