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________________ निरयाविकासत्रे वीर्यः श्रीः धर्मः, ऐश्वर्य, सोऽस्याऽस्तीति भगवान्, तम्, 'महावीर' मिति - वीग्यति पराक्रमते मोक्षाष्टाने इति वीर, महामौ वीरो महावीरो= मकरस्तम् वन्दे मनःमणि यानपूर्वकं वाचा स्तौमि नमः ७० (३) विविध प्रकार के अनुकूल और प्रतिकूल परीपहोंको महन करनेसे उस कोनेवाली या संसारकी रक्षा करनेवाले अलौकिक भावोंसे sairaat कीर्ति । (४) को आदि पायका सर्वथा निग्रहरूप वैराग्य । (५) मोक्ष | (६) सुर-असुर और मानव के अन्तःकरणको हरलेने वाला सौन्दर्य | (७) अन्य कर्मके नाशसे न होनेवाला अनन्त चल | (८) बानिया-कर्म-पटलकेर जानेसे होनेवाली अनन्य चनुष्य-ज्ञान. वर्शन, चरित्र, वीर्य-प) लक्ष्मी । १९) मोरको बोलनेका साथ चारित्र यथा ख्यात चारित्र धर्म | (१०) तीन लोकका आधिपत्य रूप ऐश्वर्य । ( 2 ) महावीर - सोक्ष के अनुoानमें पराक्रम करनेवाले होने से जाने ऐसे वर्धमान स्वामी चरम तीर्थंकरकी ફળ તથા પ્રતિફળ પરીઓને ન કથી ઉત્પન્ન २. ५० महनीयान्ववाणी कसोटि भावनाथी उत्पन्न (3 mi H ܐ ܬ こ २४४हिये सर्व पिंश्य चीन इस वक
SR No.009351
Book TitleNirayavalikasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages437
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size22 MB
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