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________________ मन्दीस्से सौवस्तिकावर्त्तम् ११, नन्दावर्त्तम् १२, बहुलम् १३, पृष्टापृष्टम् १४, व्यावर्त्तम् १५, एवम्भूतम् १६, द्विकावर्त्तम् १७, वर्तमानपदम् १८, समभिरूढम् १९, सर्वतोभद्रम् २०, प्रशिष्यम् २१, दुष्पतिग्रहम् २२ । इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि छिन्नच्छेदनयिक्रानि-छिन्नं छेदेनेच्छति यो नयः स छिन्नच्छेदनयः, यथा'धम्मो मंगलमुक्किटुं' इत्यादिश्लोकः सत्रार्थतः प्रत्येकच्छेदेन स्थितो न द्वितीयादिश्लोकमपेक्षते, इत्यत्र छिन्नच्छेदनयोऽस्ति येपां तानि छिन्नच्छेदनयिकानि स्वसमयपरिपाटया । अयं भावः-जिनसिद्धान्तानुसारेण ऋजुमूत्रादीनि द्वाविंशतिः सूत्राणि छिन्नच्छेदनयिकानीति। तथा आजीविकसूत्रपरिपाटया इत्येतानि द्वाविंशतिः आसान ७, संयूथ ८, संभिन्न ९, यथावाद १०, सौवस्तिक ११, नंदावर्त १२, बहुल १३, पृष्टापृष्ट १४, व्यावर्त १५, एवंभूत १६, द्विकावर्त १७, वर्तमानपद १८, समभिरूढ १९, सर्वतोभद्र २०, प्रशिष्य २१, और दुष्प्रतिग्रह २२। ये बाईस सूत्र जिनसिद्धान्त के अनुसार छिन्नच्छेदनयिक हैं। जो नय छेद से-पदच्छेद से छिन्न पदके-लोकगत भिन्न २ पदके अर्थ का बोधक होता है वह छिन्नच्छेद् नय है। जैसे-“धम्मो मंगलमुक्कि" यह श्लोक है। यह श्लोक सूत्रार्थ की अपेक्षा भिन्न २ पद वाला है । इसमें इसके अर्थ को समझने के लिये द्वितीयश्लोकगत पदों की अपेक्षा नहीं पडती है। तात्पर्य इसका यह है कि जिस श्लोक के अर्थ का बोध उसी श्लोकमें रहे हुए भिन्न २ पदों द्वारा हो जाता है, इसके समझने के लिये अन्य श्लोकगत पदों की अपेक्षा नहीं करनी पड़ती है और न दूसरे श्लोकों के पदों की वहां आवृत्ति ही लेनी पड़ती है वे सब श्लोक छिन्नच्छेदनयिक हैं। (6) ५२ ५२, (७) मासान, (८) सयूथ, (6) समिन, (१०) यथावा,(११) सौ1ि४, (११) नापत, (१३) पहुस, (१४) पृष्टा पृष्ट, (१५) व्यावत, (१६) मेवभूत, (१७) वित्त, (१८) वर्तमानपह, (१८) समनि३८ (२०) सर्वतोभद्र, (૨૧) પ્રશિષ્ય, અને (૨૨) દુષ્પતિગ્રહ. આ બાવીસ સૂત્ર જૈન સિદ્ધાંત અનુસાર છિન્નદાયિક છે. જે નય છેદથી–પદછેદથી છિન્ન પદના-શ્લોકગત જુદા જુદા पहना मर्थन माघ थाय छेते छिन्नरछेहनय छे. नेम "धम्मो मंगलमुक्किटुं". આ લેક છે. આ શ્લોક સૂત્રાર્થની અપેક્ષાએ ભિન્ન ભિન્ન પદવાળે છે. તેમાં તેના અર્થને સમજાવવા માટે દ્વિતીય શ્લોકમાં આવેલ પદની જરૂર પડતી નથી, તેનું તાત્પર્ય એ છે કે જે લેકના અર્થને બંધ એજ કોકમાં રહેલ ભિન્ન ભિન્ન પદે દ્વારા થઈ જાય છે, તેને સમજવાને માટે બીજા શ્લોકમાં આવેલા પદોની જરૂર પડતી નથી અને બીજા શ્લોકેના પદેની ત્યા આવૃત્તિ જ લેવી પડતી નથી. એ બધા શ્લેક છિન્નદાયિક કહેવાય છે. તથા આજીવિકમતા
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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