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________________ ३२२ मन्दीयो तथा--अवगृहीतार्थस्य निर्णयरूपोऽध्यवसायोऽचायः। अवायः, निर्णयः, निश्चयः, अवगमः, इति पर्यायाः । यथा-अयं शब्दः शंखस्यैव, इत्यादिनिश्चयात्मकोऽववोधोऽवाय इत्युच्यते ३। निर्णीतार्थविशेषस्य धारणं धारणा । सा च त्रिधा-अविच्युतिः १, वासना २, स्मृति ३श्च । तत्र तदुपयोगादविच्यवनम्-अविच्युतिः। सा चान्तर्मुहूर्तप्रमाणा ॥१॥ ततस्तया आहितो यः संस्कारः सा वासना। सा च संख्येयमसंख्येयं वा कालं दक्षिण देश का होना चाहिये, कारण दक्षिण देश में जिस प्रकार की वेषभूषा होती है उस प्रकार की वेषभूषा से यह सुसज्जित है।' तथा अवग्रह से गृहीत अर्थ का निर्णयरूप जो अध्यवसाय है वह अवाय है। जैसे 'यह शब्द शंख का ही है।' अथवा 'यह स्थाणु ही है' आदि । इस प्रकार निश्चयात्मक बोध का नाम अवाय है। निर्णय, निश्चय, अवगम, ये सब अवाय के ही पर्यायवाची शब्द हैं। अवाय-निश्चय-कुछ काल तक कायम रहता है फिर विषयान्तर में मन चला जाता है इससे वह निश्चय लुप्त हो जाता है, वह ऐसे संस्कार को डाल जाता है कि जिससे आगे कभी कोई योग्य निमित्त मिलने पर उस निश्चित विषय का स्मरण हो आता है। इस निश्चय की सतत धारा, तज्जन्यसंस्कार और संस्कारजन्य स्मरण, मति के ये सब व्यापार धारणा है । इसी बात का खुलासा करते हुए टीकाकार कहते हैं किनिर्णीत अर्थविशेष का धारण ही धारणा है । इस धारणा के अविच्युति, वासना और स्मृति, इस तरह तीन भेइ हैं। अवायद्वारा निश्चित अर्थ જે જાતને પહેરવેશ હોય છે તે પ્રકારને પહેરવેશ તેણે ધારણ કરેલ છે તથા અવગ્રહથી ગ્રહણ કરેલ અર્થના નિર્ણયરૂપ જે અધ્યવસાય (પ્રયત્ન) છે તે अवाय छे. म " मा श६ शमन छे" अथवा " मा स्थान छ" माहि. ॥ शत निश्चयात्म साधन नाम अवाय छ. निय, अपराभ, अधा अवाय नion पर्यायवाची शहछे अवाय-निश्चय | समय सुधा કાયમ રહે છે પછી મન વિષયાન્તરમાં ચાલ્યું જાય છે, તેથી તે નિશ્ચયને લીપ થાય છે, પણ તે એવા સંસ્કાર મૂકી જાય છે કે જેથી આગળ કઈ ચોગ્ય નિમિત્ત મળતાં તે નિશ્ચિત વિષયનું સ્મરણ થઈ આવે છે. “આ નિશ્ચયની સતત ધારા, તેનાથી જનિત સંસ્કાર અને સંસ્કારજનિત મરણ” મતિના એ સઘળા વ્યાપાર ધારણું છે. એજ વાતનું સ્પષ્ટીકરણ કરતા ટીકાકાર કહે છે કે–નિર્ણત અર્થવિશેષનું ગ્રહણ જ ધારણા છે. આ ધારણાનાં આ રીતે છે.
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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