SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७५ % E मानचन्द्रिकाटीका-शानभेवाः। ____ मूलम-जइ संजयसमदिहि-पजत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय मणुस्साणं उप्पज्जइ, किं पमत्तसंजयसम्मदिहि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं ? अपमत्तसंजय- सम्मदिहि-पज्जत्तगसंखेज्जवासाउय- कम्मभूमिय - गब्भवक्कंतिय--मणुस्साणं?, गोयमा ! अपमत्तसंजय-सम्मदिहि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउयकम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं उपजइ, नो पमत्तसंजयसम्मदिहि-पजत्तग-संखेजवासाउय -कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं॥ ___छाया-यदि संयतसम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भव्युक्रान्तिक-मनुष्याणामुत्पद्यते, किं प्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क -कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणाम् ?, अप्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणाम् ? गौतम ! अपमत्त-संयत सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्याणामुत्पद्यते, नो प्रमत्त-संयत-सम्यग्दृष्टि-प्रर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याणाम् ॥ टीका-'जइ संजय-सम्मदिट्ठि' इत्यादि । व्याख्या निगदसिद्धा । नवरंप्रमत्तसंयताः-प्रमाद्यन्ति-मोहनीयादिकर्मप्रभावतः संज्वलन कषायनिद्राद्यन्यतमप्रमादयोगतः संयमयोगेषु सीदन्तीति प्रमत्ताः, 'कतरिक्तः,' प्रमत्ताश्च ते संयताः प्रमत्त 'जइ संजयसम्मदिहि' इत्यादि। फिर गौतम पूछते हैं-हे भदन्त ! यदि मनःपर्ययज्ञान संयत सम्यग्दृष्टि मनुष्यों को होता है जैसा कि ऊपर आपने कहा है कि जो मनुष्य पर्यातक है, संख्यातवर्ष की आयुवाला है, कर्मभूमि में जन्मा है और गर्भ से उत्पन्न हुआ है ऐसे सकलसंयमी सम्यग्दृष्टि मनुष्य "जइ संजयसम्मदिद्वि त्याह __ णी गौतम पछे छ-" सहत! ने मन:पर्ययज्ञान संयत-सभ्यદષ્ટિ મનુષ્યને થાય છે જેમ કે આપે ઉપર કહ્યું કે જે મનુષ્યો પર્યાપ્તક છે, સંખ્યાત વર્ષનાં આયુષ્યવાળા છે, કર્મભૂમિમાં જન્મ્યાં છે, અને ગર્ભમાંથી ઉત્પન્ન થયાં છે એવા સકળસંયમી સભ્ય દષ્ટિ મનુષ્યને મન પર્યયજ્ઞાન થાય
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy