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________________ जानन्द्रिकाटीका-शानभेदाः। शेषस्य त्वानुदितस्योपशमे,क्षायोपशमिक इति क्षयोपशमानुविद्धः औदयिकभावा। मतिश्रुतावरणचक्षुर्दर्शनावरणप्रकृतीनां तु सदैव देशघातिनामेव (रसस्पर्धकानामुदयो, न सर्वघातिनाम् , तेन सर्वदापि तासामौदयिक-बायोपशमिको भावी सन्मिश्री पायेते, न तु केवल औदयिक इति । ' Tre... ___अथ प्रसङ्गवशात् प्रकृतीनां भावा उच्यन्तेमोहनीयस्य क्षायिक-क्षायोपशमिको-पशमिकौ-दयिक-पारिणामिकलक्षणाः पश्चापि भावाः सम्भवन्ति । ज्ञानावरण-दर्शनावरणा-न्तरायाणामौपरमिकवर्जाः शेषाश्चस्वारो भावाः । नाम-गोत्र-वेदनीया-युषां: क्षायिको दायिक-पारिणामिकलक्षणास्त्रयो भावाः सम्भवन्ति ।। १८ ।।.. ' that. . . . . शिष्टका-जो उदित नहीं है-उपशम होने पर क्षायोपशनिका भाव होता है। इस तरह औयिक भाव क्षयोपशमानुषिद्ध माना गया है। जैसे -मतिज्ञान, श्रुतज्ञान; चक्षुदर्शन की उत्पत्ति में- मतिज्ञानावरण श्रुत्तज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण:प्रकृतियों के देशघाति-रसस्पर्शकों का ही सदा उद्य रहा करता है, . सर्वघातिरसस्पर्धकों का नहीं, इसलिये सर्वदा इनके उद्यमें औदयिक एवं क्षायोपशमिक ये दोनों भाव मिले हुए होते हैं, केवल औदयिक भाव नहीं। इस तरह औयिक भाव क्षयोपशमानुविद्ध सिद्ध हो जाता है। ...- stra , ' ! 77 ;- प्रसंगवश अब प्रकृतियों के आव बतलाये जाते हैं। मोहनीयकर्मके क्षायिक, क्षात्योपशमिक, औपशमिक, औदयिक एवं पारिणामिक; ये पांचों ही भाव होते हैं। ज्ञानावरण, दर्शनावरण एवं अन्तराय, इन-तीन-कों के औपशमिक भाव को छोड़कर शेष, चार શિષ્ઠને કે જે ઉદિત નથી તેને ઉપશમ થતાં,ક્ષા પશિક ભાવ થાય છે. આ રીતે यौयिमा क्षयोपशमानुविद्ध भनाई छ (२). .भ-भतिज्ञान, श्रुतज्ञान, ચક્ષુદર્શનની ઉત્પત્તિમાં મતિજ્ઞાનાવરણ, શ્રુતજ્ઞાનાવરણુ, ચક્ષુર્દશનાવરણ, પ્રકૃતિ નાદેશઘાતિરસસ્પર્ધકોને જ સદા ઉદય રહ્યા કરે છે, સર્વઘાતિરસસ્પર્ધકે નહીં. તેથી હમેશાં તેના ઉદયમાં ઔદયિક અને ક્ષાશમિક, એ બને ભાવ મળેલા હોય છે, ફકત ઔદચિક ભાવ નહીં. આ રીતે ઔદયિકભાવ क्षयोपशमानुविध्य सिधा याय. छ. ... પ્રસંગવશ હવે પ્રકૃતિના ભાવ બતાવવામાં આવે છે– ? મેહનીયમના ક્ષાયિક, ક્ષાપશમિક, ઔપશમિક, ઔદયિક અને પરિણા भि., ये पाय माप .. नाना१२३, शनावर..भने पतराय, ये ना
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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