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________________ ५३८ प्रश्नम्यारो साभिः = लालित्ययुक्ताभिः, 'नरपड सिरिगमुदगणगामणकराहि' नरपति श्री समुदयमकाशकरामिराजलक्ष्मी प्रार्प चिकामिः, 'घरपट्टणुग्गयाहिं' वरपर नौद्गवाभिः = शिल्पिप्रधाननगरनिमित्नागि, ' समिद्वरायकुलसेवियारि' समृद्धराजकुलसेषितामिः = पितृपितामहादि परम्परया समागतामि, ते परिधृताभिरित्यर्थः, 'कालागुरुपारादुरगनुकाधनामनिमिष्टगधुद्ध्यामिरामा' फालागुरुपपरकुन्दुरुप्फतुरुपचूपरिगिष्टगयोद्धृताभिरामाभिः = तत्र काला गुमा-कृष्णागुरुः प्रार-प्रधान-सर्वोत्तम, अन्दुरुप चीडारयगन्याव्य, तुरुक तुरुफदेशोद्भव-सिस्काभिधगन्धद्रव्य 'लोगान' इति भाषा प्रसिद्धम् , इत्येतल क्षणा यो धूपाः धूपरिशेपास्तेपा यो पास बासना तेन विशिष्ट विस्पष्टो गन्धः स उद्धृतः परितो विमारी तेन अभिरामा मनोशा यास्तास्तथा तामिः, नाना विधधूपगधयुक्ताभिरित्यर्थः 'चिल्लियाहि' देदीप्यमानामि देशीशब्दोऽयम्, लालित्य से युक्त थे। तथा (नरवइसिरिसमुदयप्पगासणकराहि) जिनके ऊपर ये ढोरे जाते है उनकी ये राजलक्ष्मी के प्रकर्ष के सूचक होते हैं । तथा ( वरपट्टणुग्गयाहिं ) साधारण स्थानों में ये नहीं बनाये जाते हैं किन्तुजो शिल्पिप्रधान नगर होते हैं उन्हीं में ये निर्मित होते हैं। तथा (समिद्धरायकुलसेवियाहिं ) घलदेव और वासुदेव पर जो चामर ढोरे जा रहे थे-वे उनकी वशपरपरा से चले हुए आ रहे थे। ( कालागुरुपवरकुदुरुक तुरकघूववासविसिद्धगधुळ्याभिरामाहि) ये चामर कालागुरु उत्तम चौडा नामकगधद्रव्य तथा लोबान को जलाकर उनकी गध से वासित किये हुए थे, अत. इनकी चारों ओर सुगध निकल कर फैल रही थी उससे ये बड़े मनोहर लगते थे। तथा (चिल्लियाहि ) तथा " नग्वइसिरिसमुदयप्पगासणकराहि" भनी ५२ ते ढाय छ, तेमनी सरसभीनी विYसताना ते सूय हाय छ तथा " वरपणुगायाहि. "साधा રણ સ્થાનેમાં તે બનતા નથી પણ જે શિપ પ્રધાન નગરે હોય છે, તેમા ४ याभरे। मनापामा मा छे तथा " समिद्धरायकुलसेवियाहिं " महेष અને વાસુદેવ પર જે ચામર ઢોળવામા આવતા તે તેમની વશપર પરાથી यात्या मावतात "कालागुरु-पवरकुदुरुक-तुरुक-धूववास-विसिट्ठ-गधुद्ध्याभि रामाहि" ते यामशेने s मरु, उत्तम यी नामनु सुगधाहा२ द्रव्य, તથા લોબાનનો ધૂપ દઈને તેમના ગધથી સુગધ યુક્ત બનાવ્યા હતા, તેથી તેમની સુગધ મેર ફેલાઈ રહી હતી તેથી તે મનોહર લાગતા હતા તથા
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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