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________________ सुवशिनी टीका ० ४ सू० ८ बलदेवयासुदेवस्वरूपनिरूपणम् ४३९ 'उमओ पासपि ' उमयोरपि पार्श्वयोः, 'उक्विपमाणाहि' उत्तिप्यमाणाभिः= वीज्यमानाभिः सञ्चाल्यमानाभिरित्यर्थः, ' चामराहिं' चामरामि घालव्यजनैः, चामरशब्द स्त्रीलिङ्गोऽपि 'चामर चमराऽपि च' इति मेदनी कोपाव, 'सुहसीयलमाय' सुख शीतलपाताभिः सूत्रे लुप्तविभक्तिक पदम् , सुखदः शीतलश्च वात: वायुर्यासा तास्तथा ताभिः 'वीडयगा' वीजीतागाभीजीतान्यद्गानि येपाते तथा अजिया' अजिताः अन्यैरपराजिता 'अजियरहा' अजितरया: अपराजितरथाः 'हलमुसलकणगपाणी' हलमुसलकनकपाणया- हल च मुसल च कुना कनकाभरण वलय इत्यर्थ: हस्ते येपा ते तथा हलमुसल कनक पाणयो चलदेवाः। वासुदेवाश्च 'सख चकगयसत्तिणदगधरा ' शड्ड चक्रगदागक्ति नन्दनधराः शङ्ख पाञ्चजन्या भिधाचक्र-सुदर्शनाख्य, गदा-कौमोदकी शक्तिः शस्त्रविशेष , नन्दकश्च खड्ग, एतान् घरन्ति ये ते तया, वासुदेव विशेषणमिद, 'पररुज्जलसुफयविमलकोथुम किरीडधारी ' प्रवरोज्ज्वलसुकृतविमल कौस्तुभकिरीटधारिण = प्ररोज्ज्वला = ये अपनी कान्ति से यहुत अधिक देदीप्यमान हो रहे थे। ऐसे ये (चामराहि) चामर कृष्ण और बलदेव की (उभओ पासपि) आज पाजू में-दोनों पार्श्वभागो में-ढोले जा रहे थे। (सुलीयल वायवीइयगा) इनसे निर्गत सुखद और शीतल वायु से इनका शरीर वीजा जाता था (अजिया ) ये यलदेव और वासुदेव अन्य व्यक्तियों द्वारा अपराजित थे। ( अजियरहा ) इनके रथ को रोकने की किसी भी व्यक्ति में शक्ति नहीं थी, इसलिये ये अजित रथ थे। (एलमुसलकणगपाणी) पलदेव के हाथ में हल मुसल तथा सोने के आभरण अर्थात् कडे रहते थे। पाचजन्य नामका शख, सुदर्शन नामका चक्र, कौमोदकी नामकी गदा, शक्ति नामका शस्त्र और नदक नामकी तलवार, ये सब कृष्ण वासुदेव के पास रहते थे। अत्यत भास्वर, (पवरुज्जलसुकविमलको"चिल्लियाहिं " तसा तभनी तिथी ए॥ तेरवी माता तो मेवा ते " चामराहि" याभो ! मन जोनी " उभयो पासपि " मागजुम्मे मन्न ५ ढाणपामा सावता उता "सुहसीयलवायवीईयगा" તેનાથી ઉત્પન્ન થતા શીતળ અને સુખદ વાયુ તેમના શરીરપર વીઝાતે હતે " अजिया" त म भने वासुदेव in all द्वा२। २०५२नित ता " अजियरहा" तमना २थान वानी तlslat ५ व्यतिमा न ती तेथी तशी मति२५ ता" हलमुसलकणगपाणी" विना थमा ९१, મુસળ અને સેનાના કડા રહેતા હતા પાચજન્ય નામનો શખ, સુદર્શનચક, કોદકી નામની ગદા, શક્તિ નામનુ શસ્ત્ર અને નદક નામની તલવાર એ બધુ ५०५ पासव पाये २तु तु “पवरुज्जलसुकय-विमल-कोथुभ-किरीधारी"
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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