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________________ मुदशिनी टीका ० ४ सू० ८ बलदेवासुदेवस्वरूपनिरूपणम् 'उमओ पामपि ' उमयोरपि पार्श्वयोः, 'उक्खिप्पमाणाहिं' उत्तिप्यमाणाभिः वीज्यमानाभिः-सञ्चाल्यमानाभिरित्यर्थः, 'चामराहि' चामराभि घालव्यजनैः, चामरशब्द स्त्रीलिङ्गोऽपि 'चामर चमराऽपि च' इति मेदनी कोपात्, 'सुहसीयलगा. य' सुख शीतलपाताभिः सूत्रे लुप्तविभक्तिक पदम् , सुखदः शीतलश्व वाताबायुर्यासा तास्तथा ताभिः 'वीडयगा' वीजीतागाः-धीजीतान्यगानि येपा ते तथा 'अजिया' अजिताः अन्यैरपराजिता 'अजियरहा' अजितरथा अपराजितरथाः 'हलमु. सलकणगपाणी' हलमुसल कनकपाणयः= हल च मुसल च कनर नकाभरण वलय इत्यर्थः हस्ते येषा ते तया हलमुसल कनक पाणयो वलदेवाः । वासुदेवाश्च 'सख चकगयसत्तिणदगधरा ' शड्ढ चक्रगदागक्ति नन्दनधरा:-शङ्ख पाञ्चजन्या भिध'चक्र-मुदर्शनारय, गदा कौमोदकी शक्तिः-शस्त्रविशेप , नन्दकश्च खड्ग , एतान् परन्ति ये ते तया, नासुदेव विशेषणमिद, 'पररुज्जलसुफयविमलकोथुम किरीडधारी' प्रवरोज्ज्वलसुकृतविमलकौस्तुभकिरीटधारिण = प्रमरोज्ज्वलः = ये अपनी कान्ति से बहुत अधिक देदीप्यमान हो रहे थे। ऐसे ये (चामराहिं ) चामर कृष्ण और बलदेव की (उभओ पासपि) आज बाजू में-दोनों पार्श्वभागो में-ढोले जा रहे थे। (सुरसीयल वायवीइयगा) इनसे निर्गत सुखद और शीतल वायु से इनका शरीर वीजा जाता था (अजिया) ये यलदेव और वासुदेव अन्य व्यक्तियों द्वारा अपराजित थे। ( अजियरहा ) इनके रथ को रोकने की किसी भी व्यक्ति में शक्ति नहीं थी, इसलिये ये अजित रथ थे। (हलमुसलकणगपाणी) पलदेव के हाथ में एल मुसल तथा सोने के आभरण अर्थात् कडे रहते थे। पाचजन्य नामका शख, सुदर्शन नामका चक्र, कौमोदकी नामकी गदा, शक्ति नामका शस्त्र और नदक नामकी तलवार, ये सब कृष्ण वासुदेव के पास रहते थे । अत्यत भास्वर, (पवरुज्जलसुकविमलको" चिल्लियाहिं " तो तभनी अन्तिथी ! ar arl aniता उता मेवा ते “चामराहि" याभरे ४८ अने भगवनी " उभयो पासपि" मान्नुमापुणे भन्ने ५७ सपामा सावता ता "सुहसीयल्वायवीईयगा" તેનાથી ઉત્પન્ન થતા શીતળ અને સુખદ વાયુ તેમના શરીરપર વીઝા હો " अजियो" ते म सने वासुदेव भीली द्वा२१ सपरित ता " अजियरहा" तमना २याने पानी did as ५५ व्यतिमा न ती तेथी तो मरित२५ त " हलमुसलकणगपाणी" बना डायमा , મુસળ અને સેનાના કડા રહેતા હતા પાચજન્ય નામને શખ, સુદર્શનચકે, કૌમાદકી નામની ગદા, શક્તિ નામનું શસ્ત્ર અને નદડ નામની તલવાર એ બધુ ४८५ पासवा 30 "पवरुज्जलसुकय-त्रिमल-कोथुम-किरीहधारी"
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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