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________________ प्रभव्याकरणसूत्र लचलियस ललियनचियपीयपमरियापीरोदगपरमागरमार्टि ' पानाइतचपलचलितस ललितनतिन मीनिमारकीरोपामारसागरीत्पूग्नपगमि. = तत्र पानेन = वायुना जाहत = घटितः, तपन चपल यथास्यास्तथा चलितः सललित सपिलगिन र ननिता गतिविगग मात , तथा गरिभि'तरने मस्तः क्षीरोदकावरमागरस्य = क्षीर मागास्य य उत्पूर' जलममास्तद्वन् चपलाभि चलामिः पाघालतरजयुक्ततीरमागरनीरमराहसमतीयमानाभिः, अथ हसपभिरुपमयन्नाह 'माणमसरपसरपरिचियानासमियरमादि । मानस सरः प्रसरपरिचितावास गिदवे पामि.-मानमसरसः अमरे-विस्वतमदेगे परिचितः अभ्यस्त आरास: निरन्तरनिगामा, अतर विगदापाला वेपो-वर्णो यासों तास्तथाविधामिः, 'यणगगिरिसिहरमसियाहि कनकगिरिशियरसश्रितामिःसुमेरुतटविहारिणीभिः, अतएन ‘ओगाउप्पायचल जरियसिग्मयेगाहिं ' अब यनच्चियइयपसरीयखीरोदगपरसागपूरचवलारि ) वायु से आहत होने के कारण अत्यत चपल बने हुए और इसी से जो मानो विलास सहित होकर नृत्य कर रहा है, तथा तरगोने जिसे विशेप विस्तृत कर दिया है ऐसे क्षीरसागर के प्रवाह के समान जो चचल है अर्थात् अत्यत धवल तरगों से युक्त क्षीरसागर के प्रवार के जैसे जो दिखाई दे रहे हैं। तथा (माणससरपसरपरिचियावासविसयवसादि) जो हसवधू के समान प्रतीत हो रहे है, हसो मानमरोवर में रहती है इसी विषय को लेकर सूत्रकार कहते हैं कि मानसरोवर के विस्तृत प्रदेश में अभ्यस्त निरन्तर निवास के वश से जिन हमयधुओ का वर्ण धवल हो गया है, और (कणागिरिसिहरससियाहिं ) जो सुमेरुपर्वत के तटो पर विहार करती हैं, तथा (ओवाउप्पायचवल जवियसिग्घवेगाहि) तथा “पवणायचवल-चलिय-सललिय-नच्चियबीइ-पसरिय-खीरोदगपवर-साग रुप्पूरचवलाहि " ५५न भाववान ४२ यस भनेर भने ते २ ng વિલાસી બનીને નૃત્ય કરતા હોય તેવા તથા તરગોએ જેને વધારે વિસ્તૃત કરી નાખેલ છે એવા ક્ષિર સાગરના પૂર સમાન જે ચચળ છે–એટલે કે સફેદ તરગેથી યુક્ત ક્ષીરસાગરના પ્રવાહ જેવા જે કોઈ દેખાઈ રહ્યા છે, તથા "माणससर-पसर-परिचियावोसविसय-साहि "२ सखीमान वा हा છે, હસેલી માનસરોવરમાં રહે છે તે વિષયને અનુલક્ષીને સૂત્રકાર કહે છે કે માનસરોવરના વિસ્તૃત પ્રદેશમાં હમેશા રહેવાને કારણે ને હસલીઓના ૨ગ श्वेत थई गया हाय छ, भने-" कणगगिरिसिहरससियाहिं" 2 सुभर पवंतन शिम। ५२ पिडा२ उरे छे, तथा “ओवाउप्पायचवलजवियसिग्ध
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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