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________________ आवश्यकमूत्रस्य - - अथवा निरुक्तरीत्या 'मिच्छामि, दुषड' इत्यस्य 'मि' मयि विपयसप्तम्याश्रयणान्मद्विपयक छयतिन्नित्ति शिवमुखमिति छाः मिथ्या स्वादिस्ते नो पलक्षित, 'मि 'मिनोमि-पक्षिपामि, किम् ', इत्याह-दुक्ड' दुष्कृत-पापम् । एवच मद्विपयक मिथ्यात्वाापलक्षित दुप्कृत (पाप) प्रक्षिपामिदूरतः परिहारामीत्यर्थः । यद्वा 'मिच्छामि' इति पदवयव्याच्या पूर्ववद , 'दुक्ड इत्यत्र च 'दु'-रिति दुष्ट 'के' त्यात्मनि 'हे' ति सत्ताया, दुष्टत्व च सत्ताया विवक्षित, तथाच-'मि' मयि 'छा' मिथ्यात्वादिना हेतुभूतेन दुष्टानिन्दि तामात्मन. सत्तामतिचारपटनिलक्षणा 'मि' प्रक्षिपामीत्यर्थ । व्याख्यानान्तराणि ____ अथवा निरुक्त रीतिसे 'मिच्छामि दुक्कड' का अर्थ इस प्रकार भी होता हैं-'मि' 'छा' 'मि' "दुक्कड' ऐसा पदच्छेद करने से "मि' मुझ में रहे हुए 'छा=मिथ्यात्व अविरति कषाय प्रमाद अशुभयोगरूप 'दुक्कड'=पाप को 'मि' दूर करता हूँ। . अथवा 'मि' 'छा' 'मि' का व्याख्यान पहले की तरह जानना, 'दुक्कड' शब्द में 'दु' 'क' 'ड' इस प्रकार पटच्छेद करने से 'दु'दुष्ट (अप्रशस्त) 'क' आत्मा की 'ड' सत्ता को, अतएव समुदाय का यह अर्थ हुआ कि-उक्त मिथ्यात्वादिके कारण मुझमें रही हुई मा नित-शत-प्रमाणे " मिच्छामि दुक्कडम् " मर्थ मेवी गत पए, थाय छे “मि छा मि दुक्कड" सेवा परछे ४२वाथी 'मि' भाराभा २७सा 'छा' मिथ्यात्व मविरति पाय प्रभात शुलयोग३५ 'दुक्कड' पापने 'मि' र ४३ छ, अथवा 'मि' 'छा' 'मि' नु व्याज्यान पडेनानी मा युयु 'दुकड' शहमा "दु क ड" मेवी शत पहछे ४२वाथी ' दष्ट (प्रशस्त) 'क' मामानी 'ड%D સત્તાને, અએવ સમુદાયને આ અર્થ થાય છે કે ઉકત મિથ્યાત્વાદિને કારણે १- 'छा' 'छो छेदने' अस्माकर्तरि 'क्विप् । 'आदेच उपदेश०' इत्याकार। २- 'तेन' इत्यत्र- 'जटाभिस्तापस' इतिवत्तृतीया । ३- 'मिनोमि' 'डुमिन् प्रक्षेपणे' अस्मात्करि किप । 'मि' इत्यत्रार्पवा दीर्घाभाव । ४- 'दुक्ड' इत्यत्र कृयोगे पष्ठीमाप्तावपि आपवाद्वितीया ।
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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