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________________ राज राजमार्गाचयाचम्य आवामं ददाति । ततः खलु स चित्रः मारथिः विमजितःमन जितछात्रोः अन्तिकात् प्रतिनिष्क्रामति, यत्रैव वाह्या उपस्थानशाल व चातुर्घष्टः अश्वरथस्तत्रैव उपागच्छति चातुर्वण्यम् अश्वरथं दुरोहनि भाया नगर्या मध्यमध्येन यत्र राजमार्गावगाढ आवासस्तत्रैव उपागति, तुरगान् निगृह्णाति, स्थ' स्थापयति, रथात् प्रत्यवरोहति, स्नातः आद विशेषणों वाले माभूत को जो कि प्रदेशी राजाने मेंपित किया था. ले लिया. (चित्त' सारहिं सकारे, सम्माणेड़, पडिविसज्जेह ) फिर कुशलमभ्रादि पूछकर उसका सत्कार किया, आमन आदि देकर उसका सन्मान किया और बाद में उसे विसर्जित कर दिया. अर्थात विश्राम करने के निमित्त भेज दिया. (गयमग्गमोगाढ' च संवासं दलयइ) उसे राजमार्ग के पास स्थित गृह में ठहराया गया (तए णं से चित्ते साही विसजए समाणे जियससस्स अलियाओ पडिनिक्खमह - जेणेव बाहिरिया उद्वाणसाला जेणेत्र चाउरघंटे आसर हे तेणेव उवागच्छ) अतः वह चित्र सारथि जितात्रु राजा द्वारा विसर्जित किया गया होकर उनके पास से चला आया और जहां वाह्य उपस्थानशाला थी, जहां चातुर्घट अश्वरथ था. वहां आकर वह (चाउघंटं आसरहं दुरूहई) उसे चातुघट रथ पर सवार हो गया (सावत्थोप णम्ररीए मज्झ मज्झेणं जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छह) और श्रावस्ती नगरी के बीचो बीच से होता हुआ जहां राजमार्ग पर स्थित आवास गृह था वहां पर आया. ( तुरए विशेषणवाजी लेटने- नेने अदेशी राममे भोली हुती-स्वीअरी सीधी. (चित्त साहिं 'सक्कारेइ, सम्माणेड़, पडित्रिमज्जेइ) त्यारयछी कुशलता विषे સમાચારે પૂછીને તેના સત્કાર કર્યાં આસન વગેરે આપીને તેનું સન્માન કર્યુ. અને ત્યારપછી तेने विसर्जितरी हीघो. भेटते है विश्राम देखा भाटे मोडली हीधी. (रायमग्गमोगा च संवासं दलयइ) तेने रानभार्गनी पासेना घरभां उतारी माग्यो. (तए णं से चित्ते सारही विसज्जिए समाणे जियस तुस्स अंतियाओ पडिनिक्खमइजेणेव बाहिरिया उबट्टाणसाला जेणेत्र चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छ३). ત્યારપછી જિતશત્રુ રાજા પાસેથી વિસર્જિત કરાયેલે તે ચિત્રસારથી ત્યાંથી રવાના થયા અને જયાં ખાહ્ય ઉપસ્થાનશાળા હતી, જયાં ચાતુ અશ્વરથ હતા ત્યાં આવ્યા त्यां आवीने ते (चउग्धंटें आसरहं दुरूहइ) यातुर्घटं रथ पर सवार थयेो. (सावत्थीए णयरी मज्झ मज्झणं जेणेव रायमग्गमोपाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ ) અને શ્રાવસ્તીનગરીના મધ્યમાં થઈને જયાં રાજમાર્ગ પર સ્થિત આવાસ-ગૃહ હતુ રે ४० ⇒ " है
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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