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________________ सुधोधिनी टीका सू. १०६ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् . ४१ कृतबलिकर्मा कृतकौतुकमङ्गलपाय श्चत्तः शुद्धप्रवेश्यानि मङ्गल्यानि वस्त्राणि प्रवरपरिहितः अल्पमहर्घाभरणालङ्कृतशरीरो जिमितभुक्तात्तरागतोऽपिच खेल सन् पूर्वापराह्नकालसमये गन्धश्च नाटकैश्च उपनत्यमान २ उपगीयमान उपगीयमान उपलाल्यमानः २. इष्टान् शब्द-स्पर्श-रस-रूपगन्धान. :पश्च. विधान् मानुष्यकान काम भोगान् प्रत्यनुभवन विहरति ॥ सु.० १०६ ॥ निगिहिई, रह ठवेइ, रहाओ पचोरुहइ) वहां आकर के उसने घोडौंको रोको रथ को खड़ा किया और फिर रथ से नीचे उतरा (हाए कय. बलिकम्में, ऋरकोउयमंगलपायचित्त मुद्रप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरंपरिहिए) बाद में उसने ग्नान किया. बलिकर्म-बायसादिकों के लिये अन्न का भाग दिया, दुःखस्पनों को नाश करने के लिये कौतुक, मंगलरूपः प्रायश्चित्त किये। बाद में शुद्ध राजसभा में प्रवेश योग्य ऐसे मागलिक वस्त्रों को रीति के अनुसार पहिरा (अप्पमहग्धाभरणीलंकिय. सरीरे) फिर उसने अल्प भारवाले बहुमूल्य आभरणों से अपने शरीर को आलंकृत किया और (जिमियभुत्तरागए. वियणं समाणे) ' जीमने के बाद अर्थात् भोजन करके-फिर वह उपवेशनस्थान में आ गया (पुव्वावरण्हकालसमयंसि) वहां दिवस के तृतीय प्रहर में (गंधवेहिं य णाडगेहि य उवणचिजमाणे, उवणचिन्जमाणे उवगाइजमाणे २ उवलालि. ज्जमाणे २) गीतों द्वारा और नाटकों द्वाराबार २ अपना २ विषय सिखा. कर, अपना २ विषयः सुनाकर वारंवार रिझाया गया, वारबार विलास. त्यां गया. (तुरए निगिहिइ, रहं ठवेई, रहाओ पच्चोरुहइ) त्या पायाने ते ઘેડાઓને ઉભા રાખ્યા રથ થંભાવ્યું. અને ત્યારપછી તે રથમાંથી નીચે ઉતર્યો— (हाए कयबलिकम्मे, कयकोउपमंगलपायच्छिते मुद्धप्पावेसाई मंगलाई स्थाइ पवरपरिहिए) या२॥ तेणे स्नान यु:-सिम ४-४०11. वगैरेने मन्ना आयो दुस्वप्नाने नष्ट ४२१। भाट अतु-भाग ३५. प्रायश्चित्त या. त्या२पछी. २२०४सामा शाले न्या. २१२७ भांति वो तो धार. ४ा. (अप्पमहग्याभरणालंकियसरी३) त्या२०६६ तेथे.. RELHIRवा... मभूक्ष्य माथी पोताना श२ने AYIयु भने (जिमियभुत्त्तरागए. वि य णं समाणे) भ्या पछी मेरो मन रीने ते ७५वेशन स्थान त२६ गया.. (पुव्वावरण्हकाल. समयंसि) त्या विसना श्री ५२मा (गंधवे हि य णाडगेहि य उवणचिज्जमाणे. उवणचिज्जमाणे उवागाइज्जमाणे-२ उचलालिज्जमाणे२) त्या तो 43, નાટકે વડે વારંવાર પિતાનો વિષ્ય સિખાવેલે પોતાનો વિષય સંભળાવીને પ્રસન
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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