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________________ 4.-11 ___सुबोधिनी टीका. सूत्र १०६ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजी प्रदेशिराजवणनम् ३९ मूलम्-तएणं मे जियसन राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थ 'जाव पाहुड पडिच्छइ, चित्ते सारहिं सकारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जेइ, रायमग्गमोगाढं च संवासं दलयइ । तए णं से चित्त सारही विसज्जिए समाणे जियस स्स अंतियाओ पडिनिक्खमइ, जेणेव बाहिरिया उवटाणसाली जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवाग. च्छइ, चाउग्घंट आसरह दुरूहंइ, सावत्याए णयरीए मज्झमझेणं जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ, तुरए निगिहड़, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, पहाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लोइं वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे जिमियभुत्तुत्तरागए वियणं समाणे पुत्वावरण्हकालसमयंसि गंधव्वेहि य गाडगेहि य उक्नच्चिजमाणे उवनचिजमाणे उवगाइजमाणे २ उवलोलिज्जमाणे २ इ8 सहफरिस-रस-रूव-गंधे-पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विह३ ॥ स० १०६ छाया-ततः खलु स जितशत्र राजा चित्रस्य सारथेस्तन्महार्थ यावत् प्राभृत प्रतीच्छति चित्र सारथिं सत्कारयति सम्मानयति प्रतिविसर्जयति, शब्दों का उच्चारण करते हुए उन्हें बधाई दी. बाद में लाये हुए उस महाघ आदि विशेषणों वाले प्राभूत को उनके लिये अर्पण किया ।सू.१०५। 'तए णं से जियसत्तूराया'.. इत्यादि । सूत्रार्थ--(तएणं से जिसत्तू राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थ जात्र पाहुडं पडिच्छइ) तब जितशत्रु राजाने चित्र सारथि से दिये गये महार्थ તેમણે વધામણી આપી. ત્યારપછી તેણે મહાર્થ વગેરે વિશેષણવાળી ભેટ રાજાને समर्पित ४0. ॥१०॥ . 'त एण से जियसन्त राया' इत्यादि। सूत्रार्थ-(तए से जियसत्त राया चत्तरस सारहिस्स त महत्थं जाव पाहुड पडिच्छइ) du* २२० थिसाथि 43 मत ४२शयेही मडा वगेरे
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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